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________________ महानिशीथ-५/-/८४४ ५३ और वध की शिक्षा पाए लेकिन जब तक बच्चे को जन्म न दे तब तक उसे मार न डाले । वध करने के लिए नियुक्त किए हुए और कोटवाली आदि उसको अपने घर ले जाकर प्रसव के समय का इन्तजार करने लगे । और उसकी रक्षा करने लगे । किसी समय हरिकेश जातिवाले हिंसक लोग उसे अपने घर ले गए । कालक्रमे उसने सावद्याचार्य के जीव को बच्चे के रूप में जन्म दिया । जन्म देकर तुरन्त ही वो बच्चे का त्याग करके मौत के डर से अतित्रस्त होनेवाली वहाँ से भाग गई । हे गौतम! जब वो एक दिसा से भागी और उस चंडाल को पता चला कि वो पापीणी भाग गई है । वध करनेवाले के आगेवान ने राजा को बिनती की, हे देव ! केल के गर्भ समान कोमल बच्चे का त्याग करके दुराचारिणी तो भाग चली । देव राजा ने प्रत्युत्तर दिया कि भले भाग गई तो उसे जाने दो, लेकिन उस बच्चे की अच्छी तरह देखभाल करना । सर्वथा वैसी कोशीश करना कि जिससे वो वच्चा मर न जाए । उसके खर्च के लिए यह पाँच हजार द्रव्य ग्रहण करो । उसके बाद राजा के हुकुम से पुत्र की तरह उस कुलटा के पुत्र का पालन-पोषण किया, कालक्रम से वो पापकर्मी फाँसी देनेवाले का अधिपति मर गया । तब राजा ने उस बच्चे को उसका वारिस बनाया । पाँच सौ चंडाल का अधिपति बनाया । वहाँ कसाई के अधिपति पद पर रहनेवाला वो उस तरह के न करनेलायक पापकार्य करके अप्रतिष्ठान नाम की साँतवी नारक पृथ्वी में गया । इस प्रकार सावधाचार्य का जीव साँतवी नारकी के वैसे घोर प्रचंड़, रौद्र अति भयानक दुःख तैतीस सागरोपम के लम्बे अरसे तक महा क्लेशपूर्वक महसूस करेक वहाँ से नीकलकर यहाँ अंतरद्वीप में एक ऊँरुग जाति में पेदा हुआ । वहाँ से मरकर तिर्यंच योनि में पाड़े के रूप में पेदा हुआ । वहाँ भी किसी नरक के दुःख हो उसके समान नामवाले दुःख छब्बीस साल तक भुगतकर उसके बाद हे गौतम! मरके मानव में जन्म लिया । वहाँ से नीकलकर उस सावद्याचार्य का जीव वसुदेव के रूप में पेदा हुआ वहाँ भी यथा उचित आयु परिपूर्ण करके कईं संग्राम आरम्भ समारम्भ महा परिग्रह के दोष से मरकर साँतवी नारकी में पहुँचा । वहाँ से नीकलकर काफी दीर्थकाल के बाद गजकर्ण नाम की मानव जाति में पेदा हुआ । वहाँ भी माँसाहार के दोष से क्रूर अध्यवसाय की मतिवाला मरके फिर साँतवी नारकी के अप्रतिष्ठान नाम के नरकावास में गया । वहाँ से नीकलकर फिर तिर्यंचगति में पाड़े के रूप में पेदा हुआ। वहाँ नरक की उपमावाला पारावार दुःख पाकर मरा फिर बाल विधवा कुलटा ब्राह्मण की पुत्री की कुक्षि में पेदा हुआ । अब उस सावद्याचार्य का जीव कुलटा के गर्भ में था तब गुप्त तरीके से गर्भ को गिराने के लिए, सड़ने के लिए क्षार, औषध योग का प्रयोग करने के दोष से कईं व्याधि और वेदना से व्याप्त शरीरखाले, दुष्ट व्याधि से सड़नेवाले परु झरित, सल सल करते कृमि के समूहवाला वो कीड़ो से खाए जानेवाला, नरक की उपमावाले, घोर दुःख के निवासभूत बाहर नीकला । हे गौतम! उसके बाद सबी लोग से निदित, गर्हित, दुगुछा करनेवाला, नफरत से सभी लोक से पराभव पानेवाला, खान, पान, भोग, उपभोग रहित गर्भावास से लेकर साँत साल, दो महिने, चार दिन तक यावज्जीव जीकर विचित्र शारीरिक, मानसिक, घोर दुःख से परेशानी भुगतते हुए मरकर भी व्यंतर देव के रूप में पेदा हुआ। वहाँ से च्यवकर मनुष्य हुआ । फिर वध करनेवाले का अधिपति और फिर उस पापकर्म के दोष से साँतवी में पहुँचा । वहाँ से
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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