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________________ ४२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद पक्ष के प्रति समान भाववाले हो, जो इहलोक-परलोक आदि साँत तरह के भय स्थान से विप्रमुक्त हो, आँठ तरह के मद स्थान का जिन्होंने सर्वथा त्याग किया हो, नौ तरह की ब्रह्मचर्य की गुप्ति की विराधना के भययुक्त, बहुश्रुत ज्ञान के धारक, आर्य कुल में जन्मे हुए, कीसी भी प्रसंग में दीनताभाव रहित, क्रोध न करनेवाले, आलस रहित, अप्रमादी, संयती वर्ग के आवागमन के विरोधी, निरंतर सतत धर्मोपदेश के दाता, सतत ओघ समाचारी के प्ररूपक, साधुत्व की मर्यादा में रहने वाले, असामाचारी के भययुक्त, आलोचना योग्य प्रायश्चित्त दान में समर्थ, वन्दनादि आदि सातो मांडली के विराधना के ज्ञाता, बडी दीक्षा-उपस्थापना योगादि क्रिया के उद्देश-समुद्देश-अनुज्ञा की विराधना के ज्ञाता हो । जो काल-क्षेत्र-द्रव्य-भाव और अन्य भावनान्तरो के ज्ञाता हो, जो कालादि आलंबन कारणो से मुक्त हो, जो बालसाधु, वृद्धसाधु, ग्लान, नवदीक्षित आदि को संयम में प्रवर्ताने में कुशल हो, जो ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि गुणो की प्ररूपणा करते हो, उनका पालन और धारण करते हो, प्रभावक हो, दृढ सम्यक्त्ववाले हो, जो खेदरहित हो, धीरजवाले हो, गंभीर हो, अतीशय सौम्यलेश्यायुक्त हो, कीसी से पराभाव पाने वाले न हो, छ काय जीव समारंभ से सर्वथा मुक्त हो, धर्म में अन्तराय करने से भयभीत हो, सर्व आशातना से डरने वाले हो, जो ऋद्धि आदि गारव और रौद्र एवं आर्तध्यान से मुक्त हो, जो सर्व आवश्यक क्रिया करने में उद्यमी एवं विशेष प्रकार से लब्धियुक्त हो । जो अकस्मात् प्रसंग में भी, कीसी की प्रेरणा हो या कोई निमंत्रण करे तो भी अकार्य आचरण न करे, ज्यादा निद्रा या ज्यादा भोजन न करते हो, सर्व आवश्यक, स्वाध्याय, ध्यान, प्रतिमा, अभिग्रह, घोर परीषह-उपसर्ग को जीतनेवाले हो, उत्तम पात्र के संग्रही, अपाज्ञ को परठने की विधि के ज्ञाता, अखंडीत देहयुक्त, परमत एवं स्वमत के ज्ञाता, क्रोधादिकषाय, अहंकार, ममत्त्व, क्रीडा, कंदर्प आदि से सर्वथा मुक्त, धर्मकथा कहनेवाले, विषयाभिलास आदि में वैराग्य उत्पन्न करनेवाले, भव्यात्मा को प्रतिबोध करनेवाले एवं-गच्छ के भार को स्थापन करने के योग्य, वो गण के स्वामी है । गण को धारण करनेवाले, तीर्थ स्वरूप, तीर्थ करनेवाले, अर्हन्त, केवली, जिन, तीर्थ की प्रभावना करनेवाले, वंदनीय, पूजनीय, नमसरणीय (नमस्कार करने के लायक) है । दर्शनीय है । परम पवत्रि, परम कल्याण स्वरूप है, वो परम मंगल रूप है, वो सिद्धि (की कारण) है, मुक्ति है, मोक्ष है । शिव है । रक्षण करनेवाले है, सिद्ध है, मुक्त है, पार पाए हुए है, देव है, देव के भी देव है, हे गौतम ! इस तरह के गुणवाले हो, उसके लिए गण की स्थापना करना, करवाना और निक्षेप करण की अनुमोदना करना, अन्यथा हे गौतम ! आज्ञा का भंग होता है । [८२२] हे भगवंत ! कितने अरसे तक यह आज्ञा प्रवेदन की है ? हे गौतम ! जब तक महायशवाले, महासत्त्ववाले, महागुणभाग, श्री प्रभु नाम के अणगार होंगे तब तक आज्ञा का प्रवर्तन होंगा । हे भगवन् ! कितने समय के बाद श्री प्रभ नाम के अणगार होंगे ? हे गौतम ! दुरन्त प्रान्त-तुच्छ लक्षणवाला न देखने के लायक रौद्र, क्रोधी, प्रचंड़, कठिन, उग्रभारी दंड, करनेवाले, मर्यादा रहित, निष्करूण, निर्दय, क्रूर, महाक्रूर, पाप मतिवाला, अनार्य मिथ्या दृष्टि, ऐसा कल्कि राजा होगा । वो राजा भिक्षाभ्रमण करने की इच्छावाले 'श्री श्रमण संघ को
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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