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________________ ३० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद शिष्य की निश्रा में संसार का पार नहीं पाते और दुसरों ने किए हुए सर्व शुभाशुभ कर्म के रिश्ते किसी को नहीं होते । [६९९-७००] तो हे गौतम! यहाँ इस तरह के हालात होने से यदि दृढ़ चारित्रवाले गीतार्थ बड़े गुण से युक्त ऐसे गुरु हो और वो बार-बार इस प्रकार वचन कहे कि इस सर्प के मुँख में ऊँगली डालकर उसका नाप बताए या उसके चोकठे में कितने दाँत है ? वो गिनकर कहे तो उसी के अनुसार ही करे वो ही कार्य को जानते है । [ ७०१-७०२] आगम के जानकार कभी भी श्वेत कौआ कहे तो भी आचार्य जो कहे उस प्रकार भरोसा करना । ऐसा में भी कुछ कारण होगी । जो किसी प्रसन्न गमनवाले भाव से गुरु ने बताया हुआ वचन ग्रहण करते है उसे पीने के औषध की तरह सुखाकारी होती है । [ ७०३] पूर्वे किए हुए पुण्य के उदयवाले भव्य सत्त्व ज्ञानादिक लक्ष्मी के भाजन बनते है । भावि में जिसका कल्याण होना है वो देवता की तरह गुरु की पर्युपासना करते है । [७०४-७०६] कई लाख प्रमाण सुख देनेवाले, सेंकड़ो दुःख से मुक्त करवानेवाले, आचार्य भगवंत है, उसके प्रकट दृष्टान्त रूप से केशी गणधर और प्रदेशी राजा है । प्रदेशी राजा ने नरक गमन की पूरी तैयारी कर दी थी । लेकिन आचार्य के प्रभाव से देव विमान प्राप्त किया । आचार्य भगवंत धर्ममतिवाले, सुंदर, मधुर, कारण, कार्य, उपमा सहित इस प्रकार के वचन के द्वारा, शिष्य के हृदय को प्रसन्न करते-करते प्रेरणा देते है । [७०७-७०८] पचपन क्रोड़, पचपन लाख, पचपन हजार पाँच सो पचपनच क्रोड़ संख्या प्रमाण यहाँ आचार्य है उसमें से बड़े गणवाले गुण समूह युक्त एक होते है कि जो सर्व तरह के उत्तम भेदो के द्वारा तीर्थंकर समान गुरु महाराज होते है । [ ७०९] वो भी हे गौतम! देवता के वचन समान है । उस सूर्य समान अन्य आचार्य की भी चौबीस तीर्थंकर की आराधना समान आराधना करनी चाहिए । [७१०] इस आचार्य पद के बारे में द्वादशांग का श्रुत पढ़ना पड़ता है । तथापि अब यह बात संक्षेप में सार के रूप में करता हूँ वो ईस प्रकार है [ ७११-११२] मुनि, संघ, तीर्थ, गण, प्रवचन, मोक्षमार्ग यह सब अर्थ कहनेवाले शब्द है । दर्शन, ज्ञान, चारित्र, घोर, उग्र तप यह सब गच्छ के पर्याय नाम जानना, जिस गच्छ में गुरु राग, द्वेष या अशुभ आशय से शिष्य को सारणादिक प्रेरणा देते हो, धमकाकर, जाते हो तो हे गौतम ! वो गच्छ नहीं है । [७१३-७२०] महानुभाग ऐसे गच्छ में गुरुकुलवास करनेवाले साधुओ को काफी निर्जरा होती है । और सारणा, वायणा, चोयणा आदि से दोष की निवृत्ति होती है गुरु के मन को अनुसरनेवाले, अतिशयविनीत, परिषह जीतनेवाले, धैर्य रखनेवाले, स्तब्ध न होनेवाले, लुब्ध न होनेवाले, गारव न करनेवाले, विकथा न करनेवाले, क्षमा रखनेवाले, इन्द्रिय का दमन करनेवाले, संतोष रखनेवाले, छ काय का रक्षण करनेवाले, वैराग के मार्ग में लीन, दश तरह की समाचारी का सेवन करनेवाले, आवश्यक को आचरनेवाले, संयम में उद्यम करनेवाले, सेंकड़ो बार कठोर, कड़े, कर्कश अनिष्ट दुष्ट निष्ठुर वचन से अपमान किया जाए । अगर वैसा व्यवहार किया जाए तो भी जो रोषायमान नहीं होते, जो अपकीर्ति करनेवाले, अपयश करनेवाले या अकार्य करनेवाले नहीं होते । गले में जान अटक जाए तो भी प्रवचन की
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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