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________________ २८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद के कलंक रहित चरम हितकारी सेंकड़ों भव में भी अति दुर्लभ तीर्थंकर भगवंत का वचन है ऐसा मानकर निर्जीव प्रदेश में जिसमें शरीर की परवा टीप-टीप न करना पड़े वैसा निरतिचार पादपोपगमन अनशन अंगीकार किया । अब किसी समय उसी प्रदेश में विचरते अरिष्टनेमि तीर्थंकर भगवान अचलित सत्त्ववाले इस भव्यात्मा के पास उसके अहेसान के लिए आ पहुँचे। उत्तमार्थ समाधिमरण साधनेवाले अतिशयवाली देशना कही । जलवाले मेघ के समान गम्भीर और देव दुंदुभि समान सुन्दर स्वरवाली तीर्थंकर की वाणी श्रवण करते करते शुभ अध्यावसाय करने से अपूर्वकरण से क्षपक श्रेणी में आरूढ़ हुआ । अंतकृत् केवली बना । उसने सिद्धि पाई । इसलिए हे गौतम ! कुशील संसर्गी का त्याग करनेवाले को इतना अंतर होता है । अध्ययन-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण इस चौथे अध्ययन में सिद्धांतज्ञाता कुछ आलापक की समयग् श्रद्धा नहीं करते । वो अश्रद्धा करते रहते है इसलिए हम भी सम्यग् श्रद्धा नहीं करते ऐसा आचार्य हरिभद्रसूरिजी का कथन है । पूरा चौथा अध्ययन अकेला ही नहीं, दुसरे अध्ययन भी इस चौथे अध्ययन के कुछ परिमित आलापक का अश्रद्धान् करते है ऐसा भाव समजो | क्योकि स्थान, समवाय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना आदि सूत्र में वो कोई भी हकीकत बताई नहीं है कि प्रति संतापक जगह है । उसकी गुफा में वास करनेवाले मानव है । उसमें परमाधार्मिक असुर का साँत-आँठ वार उत्पात् होता है, उन्हें दारूण वज्रशिला की चक्की पटल के बीच पीसना पड़ता है । अति पिले जाने से दर्द का अहेसास होने के बाद भी एक साल तक उनके प्राण नष्ट नहीं होते । (लेकिन) वृद्धवाद ऐसे है कि यह आर्षसूत्र है, उसमें विकृति का प्रवेश नहीं हुआ । इस श्रुतस्कन्ध में काफी अर्थपूर्णता है । सुंदर अतिशय सहित सातिशय युक्त कहे यह गणधर के वचन है । ऐसा होने से सहज भी यहाँ शंका मत करना । अध्ययन-५-नवनीतसार) [६८४-६८५] इस तरह कुशील संसर्गी का सर्वोपाय से त्याग करके उन्मार्ग प्रवेश किए हुए गच्छ में जो वेश से आजीविका करनेवाले हो और वैसे गच्छ में वास करे उसे निर्विघ्रपन से क्लेश बिना श्रमणपन, संयम, तप और सुन्दर भाव की प्राप्ति न हो, इतना ही नहीं लेकिन मोक्ष उससे काफी दूर रहा है । [६८६-६९१] हे गौतम ! ऐसे प्राणी है कि जो उन्मार्ग में प्रवेश किए हुए गच्छ में वास करके भव की परम्परा में भ्रमणा करते है । अर्ध पहोर, एक पहोर, एक दिन, एक पक्ष, एक मास या एक साल तक सन्मार्ग में प्रवेश किए हुए गच्छ में गुरुकुल वास में रहनेवाले साधु हे गौतम ! मौज-मजे करनेवाला या आलसी, निरुत्साही बुद्धि या मन से रहता हो लेकिन महानुभाव ऐसे उत्तम साधु के पक्ष को देखकर मंद उत्साहवाले साधु भी सर्व पराक्रम करने के लिए उत्सुक होते है । और फिर साक्षी, शंका, भय, शर्म उसका वीर्य उल्लसीत होता है । हे गौतम ! जीव की वीर्य शक्ति उल्लसीत होते जन्मान्तर में किये कर्मो को हृदय के भाव से जला देते है । इसलिए निपुणता से सन्मार्ग में प्रवेश किए गच्छ को जाँचकर उसमें संयत मुनि को जीवन पर्यन्त वास करना । [६९२] हे भगवंत ! ऐसे कौन-से गच्छ है । जिसमें वास कर शकते है ? हे गौतम !
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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