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________________ २१२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद में आर्द्र - शुष्क चीज में आई चीज हो, यानि वाल, चने आदि में ओसामण, दाल आदि गिरा हो तो पात्र में पानी डालकर पात्र झुकाकर सारा प्रवाही नीकाल दे । बाकी का कल्पे । आर्द्र में शुष्क - आर्द्र चीज में शुष्क चीज गिरी हो । यानि ओसामण, दूध, खीर आदि में चने, वाल आदि गिरे हो तो पात्र में हाथ आदि डालकर चने नीकाल शके उतना नीकालना, बचा हुआ कल्पे । आर्द्र में आर्द्र-आर्द्र चीज में आर्द्र चीज गिर गई हो यानि ओसामण आदि में ओसामण गिरा हो तो, यदि वो द्रव्य दुर्लभ हो यानि दुसरा मिल शके ऐसा न हो और उस चीज की जरुरत हो तो जितना दोषवाला हो उतना नीकाल दे, बाकी का कल्पे । [४३३] निर्वाह हो शके ऐसा न हो तो ये चार भेद का उपयोग कर शके । यदि गुजारा हो शके ऐसा हो या दुसरा शुद्ध आहार मिल शके ऐसा हो तो पात्र में आया हुआ सबकुछ परठ देना चाहिए । गुजारा हो शके ऐसा हो तो पात्र में विशोधिकोटि से छूए हुए सभी आहार का त्याग करना, गुजारा न हो शके ऐसा हो तो चार भेद में बताने के अनुसार त्याग करे । कपट रहित जो त्याग करे वो साधु शुद्ध रहते है यानि उसे अशुभकर्म का बँध नहीं होता, लेकिन मायापूर्वक त्याग किया हो तो वो साधु कर्मबंध से बँधे जाते है । जिस क्रिया में मायावी बँधते है उसमें माया रहित शुद्ध रहते है । [४३४-४३५] अब दुसरी प्रकार से विशोधिकोटि अविशोधिकोटि समजाते है । कोटिकरण दो प्रकार से । उद्गमकोटि और विशोधिकोटि । उद्गमकोटि छह प्रकार से, आगे कहने के अनुसार – विशोधिकोटि कई प्रकार से ९-१८-२७-५४-९० और २७० भेद होते है । ९-प्रकार - वध करना, करवाना और अनुमोदना करना । पकाना और अनुमोदना करना। बिकता हुआ लेना, दिलाना और अनुमोदना करना । पहले छह भेद अविशोधिकोटि के और अंतिम तीन विशोधिकोटि के समजना । १८-प्रकार - नव कोटि को किसी राग से या किसी द्वेष से सेवन करे । ९ x २ = १८, २७ प्रकार (नव कोटि का) सेवन करनेवाला किसी मिथ्यादृष्टि निःशंकपन सेवन करे, किसी सम्यग्दृष्टि विरतिवाला आत्मा अनाभोग से सेवन करे, किसी सम्यग्दृष्टि अविरतिपन के कारण से गृहस्थपन का आलम्बन करते हुए सेवन करे । मिथ्यात्व, अज्ञान और अविरति रूप से सेवन करते हुए ९ x ३ = २७ प्रकार बने । ५४ प्रकार - २७ प्रकार को किसी राग से सेवन करे, किसी द्वेष से सेवन करे, २७ x २ = ५४ प्रकार हो । ९० प्रकार - नौ कोटि कोई पुष्ट आलम्बन से अकाल अरण्य आदि विकट देश काल में क्षमादि दश प्रकार के धर्म का पालन करने के लिए सेवन करे | ९ x १० = ९० प्रकार हो । २७० प्रकार - इसमें किसी विशिष्ट चारित्र निमित्त से सेवन करे, किसी चारित्र में विशिष्ट ज्ञान निमित्त से सेवन करे, किसी चारित्र में खास दर्शन की स्थिरता निमित्त से दोष सेवन करे ९० x ३ = २७० प्रकार हो । [४३६] ऊपर कहने के अनुसार वो सोलह उद्गम के दोष गृहस्थ से उत्पन्न हुए मानना। यानि गृहस्थ करते है । अब कहा जाता है कि उस उद्भव के (१६) दोष साधु से होते समजना । यानि साधु खुद दोष उत्पन्न करते है । [४३७-४४२] उत्पादना के चार निक्षेप है । १. नाम उत्पादना, २. स्थापना उत्पादना, ३. द्रव्य उत्पादना, ४. भाव उत्पादना । नाम उत्पादना - उत्पादना ऐसा किसी का भी नाम होना वो । स्थापना उत्पादना - उत्पादना की स्थापना - आकृति की हो वो । द्रव्य उत्पादना - तीन प्रकार से । सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यउत्पादना । भाव उत्पादना -दो प्रकार से।
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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