SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिंडनियुक्ति-२९४ १९९ कहलाते है । ऐसा दोषवाला आहार साधु को न कल्पे । लेकिन उस शुद्ध आहार को वो उपकरण आदि पर से लेकर गृहस्थ ने अपने लिए कहीं ओर रखा हो तो वो आहारादि साधु को कल्पे । भक्तपान बादरपूति - आधाकर्मी अंगारे पर जीरु, हिंग, राई आदि डालकर जलाने से जो धुआँ हो उस पर उल्टा बरतन रखकर बरतन धुंए की वासनावाला किया हो यानि वधार किया हो तो उस आधाकर्मी बरतन आदि में शुद्ध आहार डाला हो या तो आधाकर्मी आहार से खरड़ित हाथ या चम्मच आदि से दिया गया शुद्ध आहार, वो भक्तपान बादरपूति दोषवाला गिना जाता है। ऐसा आहार साधु को न कल्पे । सूक्ष्मपति - आधाकर्मी सम्बन्धी ईधन - लकड़ियाँ, अंगारे आदि या उसका धुंआ, बदबूं आदि शुद्ध आहारादि को लगे तो सूक्ष्मपूति। सूक्ष्मपूतिवाला अकल्प्य नहीं होता क्योंकि धुंआ, बदबूं सकल लोक में फैल जाए, इसलिए वो सूक्ष्मपूति टाल देना नामुमकीन होने से उसका त्याग करना आगम में नही कहा । शिष्य कहते है कि 'सूक्ष्मपूति नामुमकीन परिहार क्यो ? तुमने जो जिस पात्र में आधाकर्मी आहार ग्रहण किया हो तो आधाकर्मी आहार पात्र में से निकाल दिया जाए या ऊँगली या हाथ पर चिपका हुआ भी निकाल दिया जाए उसके बाद वो पात्र तीन बार पानी से धोए बिना उसमें शुद्ध आहार ग्रहण किया जाए तो उसे सूक्ष्मपूति मानो, तो यह सूक्ष्मपूति दोष उस पात्र को तीन बार साफ करने से दूर कर शकेंगे । इसलिए सूक्ष्मपूति मुमकीन परिहार बन जाएगा ।' आचार्य शिष्य को कहते है कि, 'तुम जो सूक्ष्मपूति मानने का कहते हो, वो सूक्ष्मपूति नहीं नही है लेकिन बादरपूति ही दोष रहता है । क्योंकि साफ किए बिना के पात्र में उस आधाकर्मी के स्थूल अवयव रहे हो और फिर केवल तीन बार पात्र साफ करने से सम्पूर्ण निरवयव नहीं होता, उस पात्र में बदबूं आती है । बदबूं भी एक गुण है और गुण द्रव्य बिना नहीं रह शकते। इसलिए तुम्हारे कहने के अनुसार तो भी सुक्ष्मपूति नहीं होगी । इसके अनुसार कि इसलिए सूक्ष्मपूति समजने के समान है लेकिन उसका त्याग नामुमकीन है । व्यवहार में भी दूर से अशुचि की बदबूं आ रही हो तो लोग उसको बाध नहीं मानते, ऐसे चीज का परिहार नहीं करते । यदि अशुचि चीज किसी को लग जाए तो उस चीज का उपयोग नहीं करते, लेकिन केवल बदबूँ से उसका त्याग भी नहीं किया जाता । झहर की बदबूँ दूर से आए तो पुरुष मर नहीं जाता, उसी प्रकार बदबूं, धुंआ आदि से सूक्ष्मपति बने आहार संयमी आत्मा को त्याग करना योग्य नहीं होता, क्योंकि वो नुकशान नहीं करता । बादरपूति की शुद्धि कब होती है ? - ईंधन, धुंआ, बदबूं के अलावा समजो कि एक में आधाकर्मी पकाया, फिर उसमें से आधाकर्मी निकाल दिया, उसे साफ न किया, इसलिए वो आधाकर्मी से खरड़ित है, उसमें दुसरी बार शुद्ध आहार पकाया हो या शुद्ध सब्जी आदि रखा हो, फिर उस बरतन में से वो आधाकर्मी आहार आदि दूर करने के बाद साफ किए बिना तीसरी बार भी ऐसा ही किया तो इस तीन बार पकाया पूतिकर्म हुआ । फिर उसे नीकालकर उसी बरतन में चौथी बार पकाया जाए तो वो आहारपूति नहीं होता इसलिए कल्पे । अब यदि गृहस्थी अपने उद्देश से उस बरतन को यदि नीरवयव करने के लिए तीन बार अच्छी प्रकार से साफ करके फिर उसमें पकाए तो वो सुतरां कल्पे, उसमें क्या शक ? जिस घर में आधाकर्मी आहार पकाया हो उस दिन उस घर का आहार आधाकर्मी मान जाता है । उसके बाद तीन दिन तक पकाया हुआ आहार पूति दोषवाला माना जाता है, इसलिए चार दिन तक
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy