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________________ १९४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद करने से जीव को दंड़ना पडता है । यानि जन्म मरण आदि कई प्रकार के दुःख भुगतने पड़ते है । आधाकर्मी आहार खाने की बुद्धिवाले शुद्ध आहार खाने के बावजूद भी आज्ञाभंग के दोष से दंड़ते है और शुद्ध आहार की गवेषणा करनेवाले को शायद आधाकर्मी आहार खाने में आ जाए तो भी वो दंड़ते नहीं क्योंकि उन्होंने श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा का पालन किया है । आधाकर्मी आहार देने में कौन-से दोष है ? निर्वाह होता हो उस समय आधाकर्मी अशुद्ध आहार देने से, देनेवाला और लेनेवाला दोनो का अहित होता है । लेकिन निर्वाह न होता हो (यानि स्लान आदि कारण से) तो देने में और लेने में दोनों को हितावह है । आधाकर्मी आहार चारित्र को नष्ट करता है, इससे गृहस्थ के लिए उत्सर्ग से साधु को आधाकर्मी आहार का दान देना योग्य नहीं माना, फिर भी ग्लान आदि कारण से या अकाल आदि के समय ईतराज नहीं है बल्कि योग्य है और फायदेमंद है । जैसे बुखार से पीड़ित दर्दी को घेबर आदि देनेवाले वैद्य दोनों का अहित करते है और भस्मकपातादि की बिमारी में घेबर आदि दोनों का हित करते है, ऐसे बिना कारण देने से देनेवाला और लेनेवाला दोनों का अहित हो, बिना कारण देने से दोनों को फायदा हो । आधाकर्म मालूम करने के लिए किस प्रकार पूछे ? आधाकर्मी आहार ग्रहण न हो जाए इसलिए पूछना चाहिए । वो विधिवत् पूछना चाहिए लेकिन अविधिपूर्वक नहीं पूछा चाहिए । उसमें जो एक विधिवत् पूछने का और दुसरा अविधिवत् पूछने का उसमें अविधिपूर्वक पूछने से नुकशान होता है उस पर दृष्टांत । शाली नाम के एक गाँव में एक ग्रामणी नाम का वणिक रहता था । उसकी पत्नी भी ग्रामणी नाम की थी । एक बार वणिक दुकान पर गया था तब उसके घर एक साधु भिक्षा के लिए आए । ग्रामणी साधु को शालिजात के चावल वहोराने लगी । चावल आधाकर्मी है या शुद्ध ? वो पता करने के लिए साधुने उस स्त्री को पूछा कि, 'हे श्राविका ! यह चावल कहाँ के है ? उस स्त्री ने कहा कि, मुझे नहीं पता | मेरे पति जाने, दुकान जाकर पूछ लो । इसलिए साधु ने दुकान पर जाकर पूछा । वणिक ने कहा कि, मगध देश के सीमाड़े के गोबर गाँव से आए है । यह सुनकर वो साधु गोब्बर गाँव जाने के लिए तैयार हो गया । वहाँ भी उसे शक हुआ कि, 'यह रास्ता किसी श्रावक ने साधु के लिए बनाया होता तो ?' उस शक से रस्ता छोड़कर उल्टे रास्ते पर चलने लगा । इसलिए पाँव में काँटे - कंकर लगे कुत्ते ने काट लिया, सूर्य की गर्मी भी बढ़ने लगी। आधाकर्म की शंका से पेड़ की छाँव में भी नही बैठता । इसलिए ज्यादा गर्मी लगने से वो साधु मूर्छित हो गयां, काफी परेशान हो गया । इस प्रकार करने से ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना नहीं हो शकती । यह अविधि पृच्छा है, इस प्रकार नहीं पूछना चाहिए, लेकिन विधिवत् पूछे, वो बताते है - उस देश में चीज की कमी हो और वहाँ कई बार देखा जाए, घर में लोग कम हो और खाना ज्यादा दिखे । काफी आग्रह करते हो तो वहाँ पूछे कि यह चीज किसके लिए और किसके निमित्त से बनाई है ? उस देश में काफी चीज होती हो, तो वहाँ पूछने की जरुर नहीं है । लेकिन घर में लोग कम हो और आग्रह करे तो पूछे । अनादर यानि काफी आग्रह न हो और घर में पुरुष कम हो तो पूछने की जरुरत नहीं है । क्योंकि आधाकर्मी हो तो आग्रह करे । देनेवाला सरल हो तो पूछने पर जैसा हो ऐसा बोल दे कि, "भगवन् ! यह तुम्हारे लिए बनाया
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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