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________________ १७ नमो नमो निम्मलदसणस्स | ३९/२ महानिशीथ | छेदसूत्र-६/२ हिन्दी अनुवाद (अध्ययन-४-कुशील संसर्ग [६५४] हे भगवंत ! उस सुमति ने कुशील संसर्ग किस तरह किया था कि जिससे इस तरह के अति भयानक दुःख परीणामवाला भवस्थिति और कायस्थिति पार रहित भवसागर में दुःख से संतप्त बेचारा वो भ्रमण करेगा । सर्वज्ञभगवंत के उपदेशीत अहिंसा लक्षणवाले क्षमा आदि दश प्रकार के धर्म को और सम्यक्त्व न पाए, हे गौतम ! वो बात यह है इस भारतवर्ष में मगध नाम का देश है । उसमें कुशस्थल नाम का नगर था, उसमें पुण्य-पाप समजनेवाले, जीवअजीवादिक चीज का यथार्थ रूप जिन्होंने अच्छी तरह से पहचाना है, ऐसी विशाल ऋद्धिवाले सुमति और नागिल नाम के दो सगे भाई श्रावक धर्म का पालन करते थे । किसी समय अंतराय कर्म के उदय से उनका वैभव विलय हुआ । लेकिन सत्त्व और पराक्रम तो पहले से ही थे । अचलित सत्त्व पराक्रमवाले, अत्यन्त परलोक भीरु, छलकपट और झूठ से विरमित, भगवंत के बताए चार तरह के दान आदि धर्म का सेवन करते थे। श्रावक धर्म का पालन करते, किसी की बुराई न करते, नम्रता रखते, सरल स्वभाववाले, गुणरूप रत्न के निवास स्थान समान, क्षमा के सागर, सज्जन की मैत्री रखनेवाले, कईं दिन तक जिसके गुणरत्न का वर्णन किया जाए वैसे गुण के भंडार समान श्रावक थे ।। जब उनको अशुभ कर्म का उदय हुआ और उनकी संपत्ति अब अष्टाह्निका महामहोत्सव आदि ईष्टदेवता की इच्छा अनुसार पूजा, सत्कार, साधर्मिक का सम्मान, बंधुवर्ग के व्यवहार आदि करने के लिए असमर्थ हुई । [६५५-६६०] अब किसी समय घर में महमान आते तो उसका सत्कार नहीं किया जा शकता । स्नेहीवर्ग के मनोरथ पूरे नहीं कर शकते, अपने मित्र, स्वजन, परिवार-जन, बँन्धु, स्त्री, पुत्र, भतीजे, रिश्ते भूलकर दूर हट गए तब विषाद पानेवाले उस श्रावकों ने हे गौतम ! सोचा की, “पुरुष के पास वैभव होता है तो वो लोग उसकी आज्ञा स्वीकारते है । जल रहित मेघ को बीजली भी दूर से त्याग करती है ।" ऐसा सोचकर पहले सुमति ने नागिलभाइ को कहा कि, मान, धन रहित शरीरसीब पुरुष को ऐसे देश में चले जाए कि जहाँ अपने रिश्तेदार या आवास न मिले और दुसरे ने भी कहा कि, “जिसके पास धन न हो, उसके पास लोग आते है, जिसके पास अर्थ हो उसके कईं बँधु होते है । १९इस प्रकार वो आपस में एकमत हुए और वैसे होकर हे गौतम ! उन्होंने देशत्याग करने का तय किया कि-हम किसी अक्सान देश में चले जाए । वहाँ जाने के बाद भी दीर्धकाल से चिन्तवन किए मनोस्य पूर्ण न हो तो और देव अनुकूल हो तो दीक्षा अंगीकार करे । उसके बाद कुशस्थल नगर का स्याम करके विदेश गमन करने का तय किया।
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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