SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद । [८७६-८८३] आहार करने की विधि पहले स्निग्ध और मधुर आहार खाना । क्योंकि उससे बुद्धि और शक्ति बढती है चित्त शान्त हो जाता है बल - ताकत हो, तो वैयावच्च अच्छी प्रकार से कर शके और फिर स्निग्ध आहार अन्त में खाने के लिए रखा हो और परठवना पड़े तो असंयम होता है । इसलिए पहले स्निग्ध और मधुर आहार खाना चाहिए। कटक छेद- यानि टुकड़े करके खाना । प्रतरछेद - यानी ऊपर से खाते जाना । शेर भक्षित यानि एक ओर से शुरू करके पूरा आहार क्रमसर खाना । आहार करते समय आवाज न करना । चबचब न करना । जल्दबाझी न करना । धीरे-धीरे भी मत खाए । खाते समय गिराए नहीं । राग-द्वेष नहीं रखना चाहिए । मन, वचन और काया से गुप्त होकर शान्त चित्त से आहार करना चाहिए । १६८ · [८८४-८८९] उद्गम उत्पादक के दोष से शुद्ध, एषणा दोष रहित ऐसे गुड़ आदि भी आहार दृष्टभाव से ज्यादा ग्रहण करने से साधु, ज्ञान, दर्शन और चारित्र से असार होता है । जबकि शुद्धभाव से प्रमाणसर आहार ग्रहण करने से साधु ज्ञान, दर्शन और चारित्र के सार समान (कर्मनिर्जरा करनेवाले) होते है । [८९०-८९५] गौचरी कम हो तो क्या करे और भोजन शुद्धि किस प्रकार बनी रहे उसकी समज यहाँ दी है । जैसे कि गौचरी तुरन्त बाँटकर गोचरी दे और धूम अंगार आदि दोष का निवारण करे आदि । [८९६-९०८] आहार करने के छह कारण क्षुधावेदना शमन के लिए, वैयावच्च करने के लिए, इर्यापथिकी ढूँढने के लिए, संयम पालन के लिए, देह टिकाने के लिए, स्वाध्याय करने के लिए । आहार न लेने के छ कारण ताव आदि हो, राजा - स्वजन आदि का उपद्रव हो, ब्रह्मचर्य की रक्षा करने के लिए जीवदया के लिए (बारिस, धुमस आदि हो ) उपवास आदि तपस्या की हो, देह का त्याग करने के लिए, अनशन अपनाने पर । आहार लेने के बाद पात्रा तीन बार पानी से धोने चाहिए । [९०९-९१३] आहार बचा हो तो क्या करे ? खाने के बाद भी आहार बचा हो तो रत्नाधिक साधु बचा हुआ आहार आचार्य महाराज को दिखाए । आचार्य महाराज कहे कि आयंबिल उपवासवाले साधु को बुलाओ । मोह की चिकित्सा के लिए जिन्होंने उपवास किया हो, जिन्होंने अठ्ठम या उससे ज्यादा उपवास किए हो, जो ग्लान हो, बुखारवाले हो, जो आत्मलब्धिक हो - उसके अलावा साधुओ को रत्नाधिक साधु कहते है कि, तुम्हे आचार्य भगवंत बुलाते है । वो साधु तुरन्त आचार्य महाराज के पास जाकर वंदन करके कहे कि, फरमाओ भगवंत ! क्या आज्ञा है ? आचार्य महाराजने कहा कि यह आहार बचा है, उसे खा लो। यह सुनकर साधु ने कहा कि, खाया जाएगा उतना खाऊँगा ।' ऐसा कहकर खुद से खाया जाए उतना आहार खाए । फिर भी बचे तो जिसका पात्र हो वो साधु आहार परठवे । यदि खानेवाला साधु 'खाया जाएगा उतना खाऊँगा' ऐसा न बोले होते तो बचा हुआ वो खुद ही परठवे । - [९१४-९१५] विधिवत् लाया हुआ और विधिवत् खाया हुआ आहार दुसरे को दे । उसके चार भेद है । विधिवत् ग्रहण किया हुआ और विधिवत् खाया हुआ । अविधि से ग्रहण किया हुआ और अविधि से खाया हुआ । अविधि से ग्रहण किया हुआ और अविधि से खाया हुआ । विधिवत् ग्रहण किया हुआ और उद्गम आदि दोष रहित गृहस्थ ने जैसे दिया ऐसे ही
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy