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________________ ओघनियुक्ति-६७९ १६१ अपवाद - आचार्य, स्लान, बाल, तपस्वी आदि के लिए दो से ज्यादा गोचरी के लिए जाए | जाने के बाद ठल्ला मात्रा की शंका हो जाए तो यतनापूर्वक गृहस्थ की अनुमति लेकर शंका दूर करे । साथ में गोचरी के लिए घुमने से समय लगे ऐसा न हो तो दोनो अलग हो जाए । एकाकी गोचरी के लिए गए हो और शायद स्त्री, भोग के लिए विनती करे, तो उसे समजाए कि 'मैथुन सेवन से आत्मा नरक में जाती है।' इत्यादि समजाने के बावजूद भी न छोड़े तो बोले कि 'मेरे महाव्रत गुरु के पास रखकर आऊँ । ऐसा कहकर घर के बाहर नीकल जाए । वो जाने न दे तो कहे कि कमरे में मेरे व्रत रख दूं । फिर कमरे में जाकर गले में फाँसी लंगाए । यह देखकर भय से उस स्त्री के मोहोदय का शमन हो जाए और छोड़ दे । ऐसा करने के बावजूद भी शायद उस स्त्री के मोहोदय का शमन न हो तो गले में फाँसी खाकर मर जाए । लेकिन व्रत का खंडन न करे । इस प्रकार स्त्री की यतना करे । कुत्ते, गाय आदि की इंडे के बदले यतना करे । प्रत्यनीक विरोधी के घर में न जाना, शायद उसके घर में प्रवेश हो जाए और प्रत्यनीक पकड़े तो शोर मचाए जिससे लोग इकट्ठे होने से वहाँ से नीकल जाए। [६८०-६८८] भिक्षा ग्रहण करते यतना भिक्षा ग्रहण करते ही किसी जीव की विराधना न हो उसका उपयोग रखे । कोइ निमितादि पूछे तो बताए कि मैं नहीं जानता । हिरण्य, धन आदि रहा हो वहाँ न जाए । पूर्वे कहने के अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा करे। उद्गमादि दोष रहित आहार आदि की गवेषणा करना । अशुद्ध संसक्त आहार पानी आ जाए तो मालूम होते ही तुरन्त परठवे । [६८९-७०३] दुसरे गाँव में गोचरी के लिए जाए तो भिक्षा का समय हुआ है या नहीं ? वो किसको किस प्रकार पूछे ? तरुण, मध्यम और स्थविर । हर एक में स्त्री, पुरुष और नपुंसक इन सबमें पहले कहा गया है । उस अनुसार यतनापूर्वक पूछना । भिक्षा का समय हो गया हो तो पाँव पूजकर गाँव में प्रवेश करे । गाँव में एक समाचारीवाले साधु हो तो उपकरण बाहर रखकर भीतर जाकर द्वादशावर्त वंदन करे । फिर स्थापनादि कुल पूछकर गोचरी के लिए जाए । भिन्न समाचारीवाले साधु सामने मिले तो थोभ वंदन (दो हाथ जुड़कर) करे छह जीव निकाय की रक्षा करनेवाला साधु भी यदि अयतना से आहार, निहार करे या जुगुत्सित ऐसी म्लेच्छ, चंडाल आदि कुल में से भिक्षा ग्रहण करे तो वो बोधि दुर्लभ करता है । श्री जिनशासन में दीक्षा देने में वसति करने में या आहार पानी ग्रहण करने में जिसका निषेध किया है उसका कोशीशपूर्वक पालन करना । यानि ऐसे निषिध्ध मानव को दीक्षा न देना निषिध्ध स्थान की वसति न करनी ऐसे निषिध्ध घर में से भिक्षा ग्रहण न करना । [७०४-७०८] जो साधु जैसे-तैसे जो कुछ भी मिले वो दोषित आहार उपधि आदि ग्रहण करता है उस श्रमणगुण से रहित होकर संसार बढ़ाता है । जो प्रवचन से निरपेक्ष, आहार आदि में निःशुक, लुब्ध और मोहवाला बनता है । उसका अनन्त संसार श्री जिनेश्वर भगवंतने बताया है इसलिए विधिवत् निर्दोष आहार की गवेषणा करनी । गवेषणा दो प्रकार की है । एक द्रव्य गवेषणा, दुसरी भाव गवेषणा | [७०९-७२३] द्रव्य गवेषणा का दृष्टांत । वसंतपुर नाम के नगर में जितशत्रु राजा की धारिणी नाम की रानी थी । वो एक बार चित्रसभा में गई, उसमें सुवर्ण पीठवाला मृग देखा । वो रानी गर्भवाली थी इसलिए उसे सुवर्ण पीठवाले मृग का माँस खाने की इच्छा हुइ । वो इच्छा पूरी न होने से रानी सूखने लगी । रानी को कमजोर होते देखकर राजाने पूछा कि,
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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