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________________ ओघनियुक्ति-३१८ १४७ कालग्रहण लिए बिना स्वाध्याय करे तो दोष और यदि स्वाध्याय न करे तो सूत्र अर्थ की हानि हो । स्थंडिल मात्रु न देखी हुई जगह पर परठवने से संयम विराधना और आत्मविराधना हो, यदि स्थंडिल आदि रोके तो - स्थंडिल रोकने से मौत हो, मात्रु रोकने से आँख का तेज कम हो, डकार रोकने से कोढ की बिमारी । उपर के अनुसार दोष न हो उसके लिए हो शके तब तक सुबह में जाए । उपाश्रय न मिले तो शून्यगृह, देवकुलिका या फिर उद्यान में रहे । शून्यगृह आदि में गृहस्थ आते हो तो बीच में परदा करके रहे । कोष्ठक गाय-भेंस आदि को रखने की जगह या गौशाल सभा आदि मिला हो तो वहाँ कालभूमि देखकर वहाँ काल ग्रहण करे और ठल्ला मात्रा की जगह देखकर आए । अपवादे . विकाले प्रवेश करे । शायद आने में रात हो जाए तो रात को भी प्रवेश करे । रास्ते में पहरेदार आदि मिले तो कहे कि, 'हम साधु है, चोर नहीं । वसति में प्रवेश करने से यदि वो शून्यगृह हो तो वृषभ साधु दंड ऊपर से नीचे मारे, शायद भीतर सर्प आदि हो तो चले जाए या दुसरा कुछ भीतर हो तो पता चले । उसके बाद गच्छ प्रवेश करे । आचार्य के लिए तीन संथारा भूमि रखे । एक पवनवाली, दुसरी पवन रहित और तीसरी संथारा के लिए | वसति बड़ी हो तो दुसरे साधु के लिए दूर-दूर संथारा करना, जिससे गृहस्थ के लिए जगह न रहे । वसति छोटी हो तो पंक्ति के अनुसार संथारा करके बीच में पात्रा आदि रखे । स्थविर साधु दुसरे साधुओ को संथारा की जगह बाँट दे । यदि आने में रात हो गई हो तो कालग्रहण न करे, लेकिन नियुक्ति संग्रहणी आदि गाथा धीरे स्वर से गिने । पहली पोरिसी करके गुरु के पास जाकर तीन बार सामायिक के पाठ उच्चारण पूर्वक संथारा पोरिसी पढ़ाए । लेकिन मात्रा आदि की शंका टालकर संथारा पर उत्तरपटो रखकर, पूरा शरीर पडिलेहकर गुरु महाराज के पास संथारा की आज्ञा माँगे, हाथ का तकिया बनाकर, पाँव ऊपर करके सोए । पाँव ऊपर न रख शके तो पाँव संथारा पर रखकर सो जाए । पाँव लम्बे-टूके करने से या बगल बदलते कायप्रमार्जन करे। रात को मात्रा आदि के कारण से उठे तो, उठकर पहले द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का उपयोग करे । द्रव्य से मैं कौन हूँ ? दीक्षित हूँ या अदीक्षित ? क्षेत्र से नीचा हूँ या मजले पर ? काल से रात है या दिन ? भाव से कायिकादि की शंका है कि क्या ? आँख में नींद हो तो श्वासोच्छ्वास में तकलीफ उत्पन्न हो, नींद उड़ जाए इसलिए संथारा में खड़े होकर प्रमार्जना करते हुए दरवजे के पास आए । बाहर चोर आदि का भय हो तो एक साधु को उठाए, एक साधु द्वारा के पास खड़ा रहे और खुद कायिकादि शंका टालकर आए । कूत्ते आदि जानवर का भय हो तो दो साधु को जगाए, एक साधु दरवज्जे के पास खड़ा रहे, खुद कायिकादि वोसिरावे, तीसरा रक्षा करे । फिर वापस आकर इरियावही करके खुद सूक्ष्म आनप्राण लब्धि हो तो चौदह पूर्व याद करे । लब्धियुक्त न हो तो कम होते-होते स्वाध्याय करते हुए यावत् अन्त में जघन्य से तीन गाथा गिनकर वापस सो जाए । इस प्रकार विधि करने से निद्रा के प्रमाद का दोष दूर हो जाता है । उत्सर्ग से शरीर पर वस्त्र ओढ़े बिना सोए । ठंड़ आदि लग रहा हो तो एक, दो या तीन कपडे ओढ़ ले उससे भी ठंड़ दूर न हो तो बाहर जाकर काऊस्सग करे, फिर भीतर आए, फिर भी ठंड लग रही हो तो सभी कपड़े उतार दे । फिर एक-एक वस्त्र ओढे । इसके लिए गधे का दृष्टांत जानना । अपवाद से जैसे समाधि रहे ऐसा करना । [३१९-३३१] संझी-इस प्रकार विहार करते - करते बीच में कोई गाँव आए । वो
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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