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________________ ओघनियुक्ति-४० १३३ कोइ न हो और जाना पड़े तब एकाकी बने । [४१] कोइ अतिशय सम्पन्न जाने या नव दिक्षित को उसके परिवारजन घर ले जाने के लिए आते है तब संघाटक की कमी से अकेले विहार करवाए...देवता के कहने से विहार करे तब एकाकी बने जिसके लिए कलिंग में देवी के रूदन का अवसर बताया है । [४२-४५] अन्तिम पोरिसी में आचार्य ने कहा कि तुम्हें अमुक जगह जाना चाहिए । ओघ आशय से मात्रक लाने के लिए कहा उसके लिए ग्रन्थि दी कि तुम्हें भय न हो । यहाँ उसको अपने गण की परीक्षा लेनी थी इसलिए सभी को बुलाया । मुझे कुछ गमन कार्य है । कौन जाएगा ? सभी जाने के लिए तैयार हुए तब आचार्य ने कहा कोई यह समर्थ है इसके लिए उसे जाना चाहिए तब साधु ने कहा कि आपने मुझ पर अनुग्रह किया । उस कार्य के लिए साधु को जल्दी जाना हो तो स्वाध्याय करके या बिना किए सोते समय आचार्य को बोले कि आपने बताए हुए काम के लिए मैं सुबह को जाऊँगा, ऐसा न बोले तो दोष लगे। पूछे तो शायद आचार्य को स्मरण हो कि मुझे तो दुसरा काम बताना था या जिसके लिए भेजना या वो साधु आदि तो कहीं गए है । या संघाटक कहकर जाए कि यह साधु तो गच्छ छोड़कर चला जाएगा । तब आचार्य समयोचित्त विनती करे । सुबह में जानेवाले साधु गुरु वंदन के लिए पाँव को छूए और आचार्य जगे या ध्यान में हो तो ध्यान पूरा हो तब कहे कि आपने बताए हुए काम के लिए मैं जाता हूँ । [४६-४८] अनुज्ञा प्राप्त साधु विहार करे तब नीकलते समय अंधेरा हो तो उजाला हो तब तक दुसरा साधु साथ में जाए । मल-मूत्र की शंका हो तो गाँव के नजदीक शंका के समय यदि शर्दी, चोर, कुत्ते, शेर आदि का भय हो, नगर के द्वार बन्द हो, अनजान रास्ता हो तो सुबह तक इन्तजार करे । यदि जानेवाले साधु को भोजन करके जाना हो तो गीतार्थ साधु संखडी या स्थापना कुल में से उचित दूध के सिवा घी आदि आहार लाकर दे । उसे खा ले । यदि वसति में न खाना हो तो साथ में लेकर विहार करे और दो कोश में खा ले। [४९] गाँव की हद पूरी होती हो रजोहरण से पाँव की प्रमार्जना करे । पाँव प्रमार्जन करते समय वहाँ रहे किसी गृहस्थ चल रहा हो, अन्य कार्य में चित्तवाला हो, साधु की ओर नजर न हो तो पाँव प्रमार्जन करे, यदि वो गृहस्थ देख रहा हो तो पाँव प्रमार्जन न करे, निषद्या-आसन से प्रमार्जन करे । ५०-५७] पुरुष-स्त्री-नपुंसक इन तीनों के बुढ़े मध्यम और युवान ऐसे तीन भेद है । उसमें दो साधर्मिक या दो गृहस्थ को रास्ता पूछे । तीसरा खुद तय करे | साधर्मिक या अन्यधर्मी मध्यम वय को प्रीतिपूर्वक रास्ता पूछे । दुसरों को पूछने में कई दोष की संभावना है । जैसे कि - वृद्ध नहीं जानते । बच्चे प्रपंच से झूठा रास्ता दिखाए,मध्यम वयस्क स्त्री या नपुंसक को पूछने से शक हो कि 'साधु' इनके साथ क्या बात कर रहे है ? वृद्ध-नपुंसक या स्त्री, बच्चे-नपुंसक या स्त्री चारो मार्ग से अनजान हो ऐसा हो शकता है । पास में रहनेवालेको पास जाकर रास्ता पूछे । कुछ पगले उनके पीछे जाकर पूछे और यदि चूप रहे तो रास्ता न पूछे । रास्ते में नजदीक रहे गोपाल आदि को पूछे लेकिन दूर हो उसे न पूछे । क्योंकि उस प्रकार से पूछने से शक आदि दोष एवं विराधना का दोष लगे । यदि मध्यम वयस्क पुरुष न हो तो दृढ़ स्मृतिवाले वृद्ध को और वो न हो तो भद्रिक तरुण को रास्ता पूछे ? उस प्रकार से क्रमशः प्राप्त स्त्री वर्ग को नपुंसक को स्थिति अनुसार पूछे । ऐसे कई भेद है ।
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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