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________________ निशीथ-१/५५ ७३ गाँठ लगाए...फटे वस्त्र होने से या कारण वश होकर गाँठ लगानी पड़े तो भी तीन से ज्यादा गाँठ लगाए...फटे हुए दो कपड़ों को एक साथ जुड़े...फटे कपड़ों की कारण से परस्पर तीन से ज्यादा जगह पर साँधे लगाए...अविधि से कपड़ों के टुकड़े को जुड़ दे...अलग-अलग तरह के कपड़ों को जुड़ दे । यह सब खुद करे, अन्य के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५६] जो साधु-साध्वी ज्यादा वस्त्र ग्रहण करे और वो ग्रहण किए वस्त्र को देढ़ मास से ज्यादा वक्त रखे रखवाए या जो रखे उसकी अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५७] जो साधु-साध्वी जिस घर में रहे हो वहाँ अन्य तीर्थक या गृहस्थ के पास धुंआ करवाए, करे या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५८] जो साधु-साध्वी (आधाकर्म आदि मिश्रित ऐसा) पूतिकर्म युक्त आहार (वस्त्र, पात्र, शय्या आदि) खुद उपभोग करे, अन्य के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । हस्तकर्म दोष से लेकर इस पूतिकर्म तक के जो दोष बताए उसमें से किसी भी दोष का सेवन करे, करवाए या अनुमोदन करे तो वो साधु या साध्वी को मासिक परिहार स्थान अनुद्घातिक नाम का प्रायश्चित आए । जिसके लिए दुसरे उद्देशा के आरम्भ में कहे गए भाष्य में गुरुमासिक प्रायश्चित शब्द का प्रयोग किया है । उद्देशक-१-की मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (उद्देशक-२) "निसीह" सूत्र के इस दुसरे उद्देशक में ५९ से ११७ उस तरहसे कुल मिलाके ५९ सूत्र है । इस हरएक सूत्र में वताए दोप का त्रिविध से सेवन करनेवाले 'उग्घातियम्' नाम का प्रायश्चित आता है ऐसा उद्देशक के अन्त में बताया है । दुसरे उद्देशक की शुरूआत में आई भाष्य गाथा मुताविक उसे लहुमासं प्रायश्चित से पहचाना जाता है । [५९] जो साधु-साध्वी लकड़ी के दंडवाला पादप्रौछनक करे । अर्थात् निषद्यादि दो वस्त्र रहित ऐसे केवल लकड़े की दांडीवाला रजोहरण करे । वो खुद न करे, न करवाए, करनेवाले की अनुमोदना न करे । [६०-६६] जो साधु-साध्वी इस तरह निपद्यादि दो वस्त्र रहित का केवल लकड़ी की दंडीवाला पादपोछनक अर्थात् रजोहरण ग्रहण करे...धारण करे अर्थात् रखे...वितरण करे यानि कि दुसरों को दे दे;...परिभोग करे यानि कि उससे प्रमार्जन आदि कार्य करे...किसी विशेप कारण या हालात की कारण से ऐसा रजोहरण रखना पड़े तो भी देढ़ मास से ज्यादा वक्त रखे;...ताप देने के लिए खोलकर अलग रखे । इन सर्व दोष का खुद सेवन करे, अन्य से सेवन करवाए या सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६७] जो साधु-साध्वी अचित्त वस्तु साथ में या पास रखी चीज खुद सूंघे, दुसरो को सुँघाए या सूंघनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [६८] जो साधु-साध्वी पगवटी यानि कि गमनागमन का मार्ग-कीचड़ आदि पार करने के लिए लकड़ी आदि से संक्रम, खाई आदि पार करने के लिए रस्सी का या अन्य वैसा
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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