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________________ निशीथ - १/६ [६] जो साधु-साध्वी जननांग को ठंडे या गर्म विकृत किए पानी से सामान्य या विशेष तरह से प्रक्षालन करे यानि खुद धोए, दुसरों के पास धुलवाए या धोनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित । जैसे नेत्र दर्द होता हो और कोई भी दवाई मिश्रित पानी से बार-बार धोने से वो दर्द दुःसह्य बने ऐसे गुप्तांग का बार-बार प्रक्षालन मोह का उदय पेदा करता है । ७१ [७] जो साधु पुरुषचिह्न की चमड़ी का अपवर्तन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित, जैसे सुख से सोनेवाले साँप का मुँह कोईं खोले तो उसे साँप नीगल जाए ऐसे ऐसे मुनि का चारित्र नीगल जाता है नष्ट हो जाता है । [८] जो साधु-साध्वी जननांग को नाक से सूँघे या हाथ से मर्दन करके सूँघ ले या दुसरे के पास करवाए या दुसरे ऐसे दोष का सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित... जैसे कोई झहरीली चीज सूँघ ले तो मर जाए ऐसे अतिक्रम आदि दोष से ऐसा करनेवाला मुनि अपनी आत्मा को संयम से भ्रष्ट करता है । [९] जो साधु जननेन्द्रिय को अन्य किसी योग्य स्त्रोत यानि वलय आदि छिद्र में प्रवेश करवाके शुक्र पुद्गल बाहर नीकाले, साध्वी अपने गुप्तांग में कदली फल आदि चीजे प्रवेश करवाके रज - पुद्गल बाहर नीकाले उस तरह से निर्घातन करे करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित | [१०] जो साधु-साध्वी सचित प्रतिष्ठित यानि सचित पानी आदि के साथ स्थापित ऐसी चीज को सूँघे, सूँघाये या सूँघानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित | [११] जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के पास चलने का मार्ग, पानी, कीचड़ आदी को पार करने का पुल या ऊपर चड़ने की सीड़ी आदि अवलंबन खुद करे या करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित । [१२-१८] जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पास पानी के निकाल का नाला... भिक्षा आदि स्थापन करने का सिक्का और उसका ढक्कन, आहार या शयन के लिए सूत की या डोर की चिलिमिलि यानि परदा,... सूई, कातर, नाखूनछेदनी, कान- खुतरणी आदि साधन का समारकाम करवाए, धार नीकलवाए । इसमें से कोई भी काम खुद करे, दुसरों के पास करवाए या वो दोष करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [१९-२२] जो साधु-साध्वी प्रयोजन के सिवा (गृहस्थ के पास ) सूई, कातर, कान खुतरणी, नाखून छेदिका की खुद याचना करे, दुसरे के पास करवाए या याचक की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित । [२३-२६] जो साधु-साध्वी अविधि से सूई - कातर, नाखूनछेदिका, कान खुतरणी की याचना स्वयं करे, अन्य से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [२७-३०] जो साधु-साध्वी अपने किसी कार्य के लिए सूई, कातर, नाखून छेदिका, कान खुतरणी की याचना करे, फिर दुसरे साधा-साध्वी, गृहस्थ को दे, दिलाए या देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [३१] जो साधु-साध्वी 'मुजे वस्त्र सी के लिए सूई का खप जुरूर है, काम पुरा होने पर वापस कर देंगे ऐसा कहर सूई की याचना करे । लाने के बाद उससे पात्र या अन्य चीज
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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