SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवेन्द्रस्तव-१४८ [१४८] मानव लोक बाहर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, तारे और नक्षत्र है उसकी गति भी नहीं और संचरण भी नहीं होता इसलिए उसे स्थिर ज्योतिष्क जानना । [१४९-१५०] यह चन्द्र-सूर्य जम्बूद्वीप में दो-दो, लवण समुद्र में चार-चार, धातकीखंड में बारह-बारह होते है । यानि कि जम्बूद्वीप में दुगुने, लवणसमुद्र में चारगुने और धातकीखंड में बारह गुने होते है । [१५१] घातकी खंड के आगे के क्षेत्र में मतलब द्वीप समुद्र में सूर्य-चन्द्र की गिनती उसके पूर्वे द्वीप समुद्र की गिनती से तीन तीन गुना करके और उसमें पूर्व के चन्द्र और सूर्य की गिनती बढाकर मानना चाहिए । (जैसे कि कालोदधि समुद्र में ४२-४२ चन्द्र-सूर्य विचरण करते है, वो इस तरह पूर्व के लवणसमुद्र में १२-१२ है तो उसके तीन गुने यानि ३६ और उसमें पूर्व के जंबूद्वीप दो और लवण समुद्र के चार चन्द्र सूर्य शामील करने से ४२ चन्द्र सूर्य होते है, इस तरह से आगे-आगे की गिनती होती है । [१५२] यदि तूं द्वीप समुद्र में नक्षत्र, ग्रह, तारों की गिनती जानने की इच्छा रखती हो तो एक चन्द्र परिवार की गिनती से दुगुने करने से वो द्वीपसमुद्र के नक्षत्र, ग्रह और तारो की गिनती जान शकती है । [१५३] मानुषोत्तर पर्वत के बाहर चन्द्र और सूर्य अव्यवस्थित है, वहाँ चन्द्रमा अभिजित नक्षत्र के योगवाला और सूर्य पुष्य नक्षत्र के योगवाला होता है । [१५४] सूर्य से चन्द्र और चन्द्र से सूर्य का अन्तर ५० हजार योजन से कम नहीं होता । [१५५] चन्द्र का चन्द्र से और सूर्य का सूर्य से १ लाख योजन होता है । [१५६] चन्द्रमा से सूर्य अंतरित है और प्रदीप्त सूर्य से चन्द्रमा अंतरीत है । वे अनेक वर्ण के किरणवाला है । [१५७] एक चन्द्र परिवार के ८८ ग्रह और २८ नक्षत्र होते है । [१५८] ६६९७५ कोडाकोडी तारागण होता है । [१५९-१६०] सूर्य देव की आयुदशा १ हजार वर्ष पल्योपम और चन्द्र देव की आयु दशा १ लाख वर्ष पल्योपम से अधिक, ग्रह की १ पल्योपम, नक्षत्र की आधा पल्योपम और तारों की १/४ पल्योपम कहा है । [१६१] ज्योतिष्क देव की जघन्यदशा पल्योपम का आँठवा भाग और उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक लाख पल्योपम वर्ष कही है । [१६२] मैंने भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की दशा कही है । अब महान् ऋद्धिवाले १२ कल्पपति इन्द्र का विवरण करूँगा । [१६३] पहले सौधर्मपति, दुसरे ईशानपति, तीसरे सनतकुमार, चौथे महिन्द्र । [१६४] पाँचवे ब्रह्म, छठे लांतक, साँतवे महाशुक्र, आँठवे सहस्रार । [१६५] नौवें आणत, दँशवे प्राणत, ग्यारहवे आरण और बारवें अच्युत इन्द्र होते है। [१६६] इस तरह से यह बारह कल्पपति इन्द्र कल्प के स्वामी कहलाए उनके अलावा देव को आज्ञा देनेवाला दुसरा कोई नही है । [१६७] इस कल्पवासी के ऊपर जो देवगण है वो स्वशासित भावना से पेदा होते है।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy