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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [४४] सुविनीत शिष्य ने आचार्य भगवन्त के अति कटु-रोषभरे वचन या प्रेमभरे वचन को अच्छी तरह से सहना चाहिए । ४० [४५] अब शिष्य की कसौटी के लिए उसके कुछ विशिष्ट लक्षण और गुण बताते है, जो पुरुष उत्तम जाति, कुल, रूप, यौवन, बल, वीर्य-पराक्रम, समता और सत्त्व गुण से युक्त हो मृदु-मधुरभाषी, किसी की चुगली न करनेवाला, अशठ, नग्न और अलोभी हो[४६] और अखंड हाथ और चरणवाला, कम रोमवाला, स्निग्ध और पुष्ट देहवाला, गम्भीर और उन्नत नासिकावाला उदार दृष्टि, दीर्घदृष्टिवाला और विशाल नेत्रवाला हो । [ ४७ ] जिनशासन का अनुरागी पक्षपाती, गुरजन के मुख की ओर देखनेवाला, धीर, श्रद्धा गुण से पूर्ण, विकाररहित और विनय प्रधान जीवन जीनेवाला हो । [४८] काल देश और समय - अवसर को पहचाननेवाला, शीलरूप और विनय को जाननेवाला, लोभ, भय, मोहरहित, निद्रा और परीपंह को जीतनेवाला हो, उसे कुशल पुरुष उचित शिष्य कहते है । [४९] किसी पुरुप शायद श्रुतज्ञान में निपुण हो, हेतु, कारण और विधि को जाननेवाला हो फिर भी यदि वो अविनीत और गौरव युक्त हो तो श्रुतधर महर्षि उसकी प्रशंसा नहीं करते । [५० ] पवित्र, अनुरागी, सदा विनय के आचार का आचरण करनेवाला, सरल दिलवाले, प्रवचन की शोभा को बढानेवाले और धीर ऐसे शिष्य को आगम की वाचना देनी चाहिए । [५१] उक्त विनय आदि गुण से हीन और दुसरे नय आदि सेंकडो गुण से युक्त ऐसे पुत्र को भी हितैषी पंड़ित शास्त्र नहीं पढ़ाता, तो सर्वथा गुणहीन शिष्य को कैसे शास्त्रज्ञान करवाया जाए ? [५२] निपुण सूक्ष्म मतलववाले शास्त्र में विस्तार से बताई हुई यह शिष्य परीक्षा संक्षेप में कही है । परलौकिक हित के कामी गुरु को शिष्य का अवश्य इम्तिहान लेना चाहिए । [ ५३ ] शिष्य के गुण की कीर्ति का मैंने संक्षेप में वर्णन किया है, अब विनय के निग्रह गुण बताऊँगा, वो तुम सावध चित्तवाले बनकर सुनो । [ ५४ ] विनय मोक्ष का दरवाजा है । विनय को कभी ठुकराना नहीं चाहिए क्योंकि अल्प श्रुतका अभ्यासी पुरुष भी विनय द्वारा सर्व कर्म को खपाते है । [ ५५ ] जो पुरुष विनय द्वारा अविनय को, शील सदाचार द्वारा निःशीलत्व को और अपाप-धर्म द्वारा पाप को जीत लेता है, वो तीनों लोक को जीत लेता है । [५६] पुरुष मुनि श्रुतज्ञान में निपुण हो-हेतु, कारण और विधि को जाननेवाला हो, फिर भी अविनीत और गौरव युक्त हो तो श्रुतधर - गीतार्थ पुरुष उसकी प्रशंसा नहीं करते । [५७] बहुश्रुत पुरुष भी गुणहीन, विनयहीन और चारित्र योग में शिथिल बना हो तो गीतार्थ पुरुष उसे अल्पश्रुतवाला मानता है । [ ५८ ] जो तप, नियम और शील से युक्त हो- ज्ञान दर्शन और चारित्रयोग में सदा उद्यत हो वो अल्प श्रुतवाला हो तो भी ज्ञानी पुरुष उसे बहुश्रुत का स्थान देते है । [५९] सम्यक्त्व में ज्ञान समाया हुआ है चारित्र में ज्ञान और दर्शन दोनों सामिल है, क्षमा के बल द्वारा तप और विनय द्वारा विशिष्ट तरह के नियम सफल - स्वाधीन बनते है । [६०] मोक्षफल देनेवाला विनय जिसमें नहीं है, उसके विशिष्ट तरह के तप, विशिष्ट
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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