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________________ ३७ नमो नमो निम्मलदंसणस्स | ३०/२ चन्द्रवेध्यक प्रकिर्णक-७/२- हिन्दी अनुवाद [१] लोक पुरुष के मस्तक (सिद्धशीला) पर सदा विराजमान विकसित पूर्ण, श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन गुण के धारक ऐसे श्री सिद्ध भगवन्त और लोक में ज्ञान को उद्योत करनेवाले श्री अरिहंत परमात्मा को नमस्कार हो । [२] यह प्रकरण मोक्षमार्ग के दर्शक शास्त्र-जिन आगम के सारभूत और महान गम्भीर अर्थवाला है । उसे चार तरह की विकथा से रहित एकाग्र चित्त द्वारा सुनो और सुनकर उसके अनुसार आचरण करने में पलभर का भी प्रमाद मत कर । [३] विनय, आचार्य के गुण, शिष्य के गुण, विनयनिग्रह के गुण, ज्ञानगुण, चारित्रगुण और मरणगुण में कहूँगा । [४] जिनके पास से विद्या-शिक्षा पाई है, वो आचार्य-गुरु का जो मानव पराभव तिरस्कार करता है, उसकी विद्या कैसे भी कष्ट से प्राप्त की हो तो भी निष्फल होती है । [५] कर्म की प्रबलता को लेकर जो जीव गुरु का पराभव करता है, वो अक्कडअभिमानी और विनयहीन जीव जगत में कहीं भी यश या कीर्ति नहीं पा शकता । लेकिन सर्वत्र पराभव पाता है । [६] गुरुजन ने उपदेशी हुई विद्या को जो मानव विनयपूर्वक ग्रहण करता है, वो सर्वत्र आश्रय, विश्वास और यश-कीर्ति प्राप्त करता है । [७] अविनीत शिष्य की श्रमपूर्वक शीखी हुई विद्या गुरुजन के पराभव करने की बुद्धि के दोष से अवश्य नष्ट होती है, शायद सर्वथा नष्ट न हो तो भी अपने वास्तविक लाभ फल को देनेवाली नहीं होती । [८] विद्या बार-बार स्मरण करने के योग्य है, संम्भालने योग्य है । दुर्विनीत-अपात्र को देने के लिए योग्य नहीं है । क्योंकि दुर्विनीत विद्या और विद्या दाता गुरु दोनो पराभव करते है । [९] विद्या का पराभव करनेवाला और विद्यादाता आचार्य के गुण को प्रकट नहीं करनेवाला प्रवल मिथ्यात्व पानेवाला दुर्विनीत जीव ऋपिघातक की गति यानि नरकादि दुर्गति का भोग बनता है । [१०] विनय आदि गुण से युक्त पुन्यशाली पुरुष द्वारा ग्रहण की गई विद्या भी बलवती बनती है । जैसे उत्तम कुल में पेदा होनेवाली लडकी मामूली पुरुषको पति के रूप में पाकर महान बनती है । [११] हे वत्स ! तब तक तू विनय का ही अभ्यास कर, क्योंकि विनय विना-दुर्विनीत ऐसे तुझे विद्या द्वारा क्या प्रयोजन है । सचमुच विनय शीखना दुष्कर है । विद्या तो विनीत को अति सुलभ होती है ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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