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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद ३४ तरह दूर से ही त्याग देना चाहिए । [१०४] आरम्भ में आसक्त, सिद्धांत में कहे अनुष्ठान करने में पराङ्गमुख और विषय में लंपट ऐसे मुनिओं का संग छोड़कर हे गौतम! सुविहित मुनी के समुदाय में वास करना चाहिए | [१०५] सन्मार्ग प्रतिष्ठित गच्छ को सम्यक् तरह से देखकर वैसे सन्मार्गगामी गच्छ में पक्ष - मास या जीवनपर्यन्त बसना चाहिए, क्योंकि हे गौतम! वैसा गच्छ संसार का उच्छेद करनेवाला होता है । [१०६]जिस गच्छ के भीतर क्षुल्लक या नवदीक्षित शिष्य या अकेला जवान यति उपाश्रय की रक्षा करता हो, उस गच्छ में हम कहते है कि मर्यादा कहाँ से हो ? [ १०७ ] जिस गच्छ में अकेली क्षुल्लक साध्वी, नवदीक्षित साध्वी, अथवा अकेली युवान साध्वी उपाश्रय की रक्षा करती हो, उस विहार में - उपाश्रय में है गौतम ! ब्रह्मचर्य की शुद्धि कैसी हो ? अर्थात् न हो । [१०८] जिस गच्छ के भीतर रात को अकेली साध्वी केवल दो हाथ जितना भी उपाश्रय से बाहर नीकले तो वहाँ गच्छ की मर्यादा कैसी ? अर्थात् नहीं होती । [ १०९] जिस गच्छ के भीतर अकेली साध्वी अपने बन्धु मुनि के साथ बोले, अगर अकेला मुनि अपनी भगिनी साध्वी के साथ बात-चीत भी करे, तो हे सौम्य ! उस गच्छ को गुणहीन मानना चाहिए । [११०] जिस गच्छ के भीतर साध्वी जकार मकारादि अवाच्य शब्द गृहस्थ की समक्ष बोलती है । वो साध्वी अपनी आत्मा को प्रत्यक्ष तरीके से संसार में डालते है । [१११] जिस गच्छ में रुष्ट भी हुई ऐसी साध्वी गृहस्थ के जैसी सावद्य भाषा बोलती है, उस गच्छ को हे गुणसागर गौतम ! श्रमणगुण रहित मानना चाहिए । [११२] और फिर जो साध्वी खुद को उचित ऐसे श्वेत वस्त्र का त्याग करके तरहतरह के रंग के विचित्र वस्त्र - पात्र का सेवन करती है, उसे साध्वी नहीं कहते । [११३] जो साध्वी गृहस्थ आदि का शीवना- तुगना, भरना आदि करती है या खुद तेल आदि का उद्वर्तन करती है, उसे भी साध्वी नहीं कहा जाता । [११४] विलासयुक्त गति से गमन करे, रूई आदि से भरी गद्दी में तकियापूर्वक बिस्तर आदि में शयन करे, तेल आदि से शरीर का उद्वर्तन करे और जिस स्नानादि से विभूषा करे[११५] और फिर गृहस्थ के घर जाकर कथा-कहानी कहे, युवान पुरुष के आगमन का अभिनन्दन करे उस साध्वी को शत्रु मानना चाहिए । [११६] बुढ्ढे या जवान पुरुष के सामने रात को जो साध्वी धर्म कहे उस साध्वी को भी गुणसागर गौतम ! गच्छ की शत्रु समान मानना चाहिए । [११७] जिस गच्छ में साध्वी परस्पर में कलह न करे और गृहस्थ जैसी सावद्य भाषा न बोले, उस गच्छ को सर्व गच्छ में श्रेष्ठ मानना चाहिए । [११८] देवसी, राई, पाक्षिक, चातुर्मासिक या सांवत्सरिक जो अतिचार जितना हुआ
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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