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________________ १८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद प्राप्ति की जड जो सम्यक्त्व गिना जाता है, वो सम्यक्त्व, देशविरति का और सम्यग्ज्ञान का महत्त्व विशेष माना जाता है । इससे तो श्री जिनकथित श्रमणत्व की प्राप्ती रूप लाभ की महत्ता विशेषतर है । क्योंकि ज्ञान दर्शन समान मुक्ति की कारण के सफलता का आधार श्रमणत्व पर रहा है । [१३] तथा सर्व तरह के लेश्या में जैसे शुकललेश्या सर्व व्रत, यम आदि मे जैसे ब्रह्मचर्य का व्रत और सर्व तरह के नियम के लिए जैसे श्री जिन कथित पाँच समिति और तीन गुप्ति समान गुण विशेष गिने जाते है, वैसे श्रामण्य सभी गुण मे प्रधान है । जब कि संथारा की आराधना इससे भी अधिक मानी जाती है । [१४] सर्व उत्तम तीर्थ में जैसे श्री तीर्थंकर देव का तीर्थ, सर्व जाति के अभिषेक के लिए सुमेरु के शिखर समान देवदेवेन्द्र से किए गए अभिषेक की तरह सुविहित पुरुष की संथारा की आराधना श्रेष्ठतर मानी जाती है । [१५] श्वेतकमल, पूर्णकलश, स्वस्तिक नन्दावर्त और सुन्दर फूलमाला यह सब मंगल चीज से भी अन्तिम काल की आराधना रूप संथारा अधिक मंगल है । [१६] जीनकथित तप रूप अग्नि से कर्मकाष्ठ का नाश करनेवाले, विरति नियमपालन में शूरा और सम्यग्ज्ञान से विशुद्ध आत्म परिणतिवाले और उत्तम धर्म रूप पाथेय जिसने पाया है ऐसी महानुभाव आत्माएँ संथारा रूप गजेन्द्र पर आरूढ होकर सुख से पार को पाते है । [१७] यह संथारा सुविहित आत्मा के लिए अनुपम आलम्बन है । गुण का निवासस्थान है, कल्प-आचार रूप है । और सर्वोत्तम श्री तीर्थंकर पद, मोक्षगति और सिद्धदशा का मूल कारण है । [१८] तुमने श्री जिनवचन समान अमृत से विभूषित शरीर पाया है । तेरे भवन में धर्मरूप रत्न को आश्रय करके रहनेवाली वसुधारा पडी है । [१९] क्योंकि जगत में पाने लायक सबकुछ तुने पाया है । और संथारा की आराधना को अपनाने के योग से, तुने जिनप्रवचन के लिए अच्छी धीरता रखी है । इसलिए उत्तम पुरुष से सेव्य और परमदिव्य ऐसे कल्याणलाभ की परम्परा प्राप्त की है ।। [२०] तथा सम्यगज्ञान और दर्शन रूप सुन्दर रत्न से मनोहर, विशिष्ट तरह के ज्ञानरूप प्रकाश से शोभा को धारण करनेवाले और चारित्र, शील आदि गुण से शुद्ध त्रिरत्नमाला को तुने पाया है। [२१] सुविहित पुरुष, जिसके योग से गुण की परम्परा को प्राप्त कर शकते है, उस श्री जिनकथित संथारा को जो पुण्यवान आत्माएँ पाती है, उन आत्माओं ने जगत में सारभूत ज्ञान आदि रत्न के आभूषण से अपनी शोभा बढ़ाई है । [२२] समस्त लोक में उत्तम और संसारसागर के पार को पानार ऐसा श्री जिनप्रणीत तीर्थ, तुने पाया है क्योंकि श्री जिनप्रणीत तीर्थ के साफ और शीतल गुण रूप जलप्रवाह में स्नान करके, अनन्ता मुनिवर ने निर्वाण सुख प्राप्त किया है । [२३] आश्रव, संवर और निर्जरा आदि तत्त्व, जो तीर्थ में सुव्यवस्थित रक्षित है; और शील, व्रत आदि चारित्र धर्मरूप सुन्दर पगथी से जिसका मार्ग अच्छी तरह से व्यवस्थित है वो श्री जिनप्रणीत तीर्थ कहलाता है ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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