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________________ जीतकल्प-१२ १६९ की किसी तरह आशातना करना, विनय भंग करना, इच्छाकार आदि दश समाचारी का पालन करना, अल्प भी मृषावाद, चोरी या ममत्व होना, अविधि से यानि मुहपत्ती रखे विना छींकना, वायु का उर्ध्वगमन करना, मामूली छेदन-भेदन-पीलण आदि असंकिलष्ट कर्म का सेवन करना, हास्य-कुचेष्टा करना, विकथा करना, क्रोध आदि चार कषाय का सेवन करना, शब्द आदि पाँच विषय का सेवन करना, दर्शन, ज्ञान-चारित्र या तप आदि में स्खलना होना, जयणायुक्त होकर हत्या न करते होने के बावजूद भी सहसाकार या अनुपयोगदशा से अतिचार सेवन करे तो मिथ्या दुष्कृत रूप प्रतिक्रमण से शुद्ध बने..यदि उपयोग या सावधानी से भी अल्प मात्र स्नेह सम्बन्ध, भय, शोक शरीर आदि का धोना आदि और कुचेष्टा-हास्य-विकथादि करे तो प्रतिक्रमण प्रायश्चित् जानना । यानि इन सबमें प्रतिक्रमण योग्य प्रायश्चित् आता है । (अब गाथा १३ से १५ में तदुभय प्रायश्चित बताते है ।) [१३-१५] संभ्रम, भय, दुःख, आपत्ति की कारण से सहसात् असावधानी की कारण से या पराधीनता से व्रत सम्बन्धी यदि कोई अतिचार का सेवन करे तो तदुभय यानि आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों प्रायश्चित् आता है, दुष्ट चिन्तवन, दुष्ट भाषण, दुष्ट चेष्टित यानि मन, वचन या काया से संयम विरोधी कार्य का बार-बार प्रवर्तन । वो उपयोग परिणत साधु भी इन सबको दैवसिक आदि अतिचार के रूप से न जाने, तो और सर्व भी उत्सर्ग और अपवाद से दर्शन, ज्ञान, चारित्र का जो अतिचार उसका कारण से या सहसात् सेवन हुआ हो तो तदुभय प्रायश्चित्त आता है । (गाथा १६-१७ में "विवेक" योग्य प्रायश्चित बताते है ।) [१६-१७] अशन आदि रूप पिंड, उपधि, शय्या आदि को गीतार्थ सूत्रानुसार उपयोग से ग्रहण करे वो यह शुद्ध नहीं है ऐसा माने या निरतिचार-शुद्ध विधिवत् परठवे, काल से असठपन से पहली पोरसी से लाकर चौथी तक रखे, क्षेत्र से आधा योजन दूर से लाकर रखे, सूर्य नीकलने से पहले या अस्त होने के बाद ग्रहण करे । यानि ग्रहण करने के बाद सूर्य नहीं नीकला या अस्त हुआ ऐसा माने, ग्लान-वाल आदि की कारण से अशन आदि ग्रहण किया हो, विधिवत् परिष्ठापन किया हो तो इन सबमें 'विवेक-योग्य' प्रायश्चित्त आता है । (अब काऊस्सग्ग प्रायश्चित बताते है ।) [१८] गमन, आगमन, विहार, सूत्र के उद्देश आदि, सावध या निखद्य स्वप्न आदि, नाँव, नदी से जलमार्ग पार करना उन सबमें कार्योत्सर्ग प्रायश्चित् । [१९] भोजन, पान, शयन, आसन, चैत्य, श्रमण, वसति, मल-मूत्र, गमन में २५ श्वासोच्छ्वास (वर्तमान में जिसे लोगस्स यानि इरियावही कहते है वो) काऊस्सग्ग प्रायश्चित् आता है। [२०] सौ हाथ प्रमाण यानि सो कदम भूमि वसति के बाहर गमनागमन में पच्चीस श्वासोच्छ्वास, प्राणातिपात, हिंसा का सपना आए तो सो श्वासोच्छ्वास और मैथुन के सपने में १०८ श्वासोच्छ्वास काऊस्सग्ग प्रायश्चित्त आता है । [२१] दिन सम्बन्धी प्रतिक्रमण में पहले ५० के बाद २५-२५ श्वासोच्छ्वास प्रमाण, रात्रि प्रतिक्रमण में २५-२५ श्वासोच्छ्वास प्रमाण, पविख प्रतिक्रमण में ३००, श्वासोच्छ्वास चौमासी प्रतिक्रमण में ५००, श्वासोच्छ्वास संवत्सरी में १००८ श्वासोच्छ्वास प्रमाण काऊस्सग
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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