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________________ १६४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [१०४] हे आयुष्यमती श्रमणीयां ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है-जैसे कि यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है...यावत्...सर्व दुःखो का अन्त करता है । जो कोई निर्ग्रन्थी धर्मशिक्षा के लिए उपस्थित होकर, परिषह सहती हुई, यदी उसे कामवासना का उदय हो तो उसके शमन का प्रयत्न करे । यदी उस समय वह साध्वी किसी स्त्री को देखे, जो अपने पति की एकमात्र प्राणप्रिया हो, वस्त्र एवं अलंकार पहने हुई हो । पति के द्वारा वस्त्रो की पेटी या रत्नकरंडक के समान संरक्षणी-संग्रहणीय हो । अपने प्रासाद में आती-जाती हो इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जानना । उसे देखकर अगर वह निग्रन्थी ऐसा निदान करे कि यदी मेरे सुचरित तप, नियम, ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं पूर्व वर्णित स्त्री के समान मानुषिक कामभोगो का सेवन करके मेरा जीवन व्यतीत करु । यदी वह निर्ग्रन्थी अपने इस निदान की आलोचना प्रतिक्रमण किए बिना काल करे तो पूर्व कथनानुसार देवलोक में जाकर...यावत्...पूर्व वर्णित स्त्री के समान कामभोगो का सेवन करे, ऐसा हो भी शकता है । उनको केवलि प्ररूपित धर्मश्रवण प्राप्त भी हो शकता है । किन्तु वह श्रद्धापूर्वक सुन नहीं शकती क्योंकि वह धर्मश्रवण के लिए अयोग्य है । वह उत्कृष्ट इच्छावाली, महा आरंभी यावत्...दक्षिण दिशा के नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न होती है यावत् भविष्य में बोधि दुर्लभ होती है । ___ यहीं है उस निदान शल्य का कर्मविपाक, जिससे वह केवलि प्ररूपित धर्म श्रवण के लिए अयोग्य हो जाती है । (यह हुआ दुसरा “निदान") [१०५] हे आयुष्मान श्रमणो ! मैंने धर्म का निरूपण किया है । यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है...यावत्...सब दुःखो का अन्त करता है । जो कोई निर्ग्रन्थ केवलि प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए तत्पर हुआ हो, परीषहो को सहता हो, यदी उसे कामवासना का उदय हो जाए तो उसके शमन का प्रयत्न करे इत्यादि पूर्ववत् । यदी वह किसी स्त्री को देखता है, जो अपने पतिकी एकमात्र प्राणप्रिया है...यावत् सूत्र-१०४ के समान सब कथन जानना । यदी निर्ग्रन्थ उस स्त्री को देखकर निदान करे कि "पुरुष का जीवन दुःखमय है" जो ये विशुद्ध जाति-कुल युक्त उग्रवंशी या भोगवंशी पुरुष है, वह किसी भी युद्ध में जाते है, शस्त्र प्रहार से व्यथित होते है । यों पुरुष का जीवन दुःखमय है और स्त्री का जीवन सुखमय है । अगर मेरे तप-नियम-ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो में भविष्य में स्त्रीरूप में उत्पन्न होकर भोगो का सेवन करनेवाला बनू ।। हे आयुष्मान् श्रमणो ! वह निर्ग्रन्थ निदान करके उसकी आलोचना-प्रतिक्रमण किए बिना काल करे तो वह महती ऋद्धिवाला देव हो शकता है, बाद में पूर्वोक्त कथन के समान स्त्रीरूप में उत्पन्न भी होता है । वो स्त्री को केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण भी प्राप्त होता है । लेकिन श्रद्धापूर्वक वह धर्मश्रवण करती नहीं है क्योंकि वह धर्मश्रवण के लिए अयोग्य है । वह उत्कट इच्छावाली यावत् दक्षिणदिशावर्ती नरक में उत्पन्न होती है । भविष्य में बोधि दुर्लभ होती है। हे आयुष्ममान श्रमणो ! यह उस पापरूप निदान का फल है, जिससे वह धर्मश्रवण के लिए अयोग्य हो जाता है । (यह तीसरा “निदान") [१०६] हे आयुष्मान् श्रमणो ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है । यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है...यावत्...सर्व दुःखो का अन्त करता है । यदी कोई निर्ग्रन्थी केवली प्रज्ञप्त
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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