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________________ १६२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद स्थ सुसज्ज करने की आज्ञा दी । यानाशाला के अधिकारी भी हर्षित-संतुष्ट होकर यानशाला में गए, रथ को प्रमार्जित किया, शोभायमान किया, उसके बाद वाहनशाला में आकर बैलो को निकाला, उनकी पीठ पसवारकर बहार लाए, उन बैलो के पर झुल वगैरह रखकर शोभायमान किये, अनेक अलंकार पहनाए, स्थ में जोतकर रथ को बाहर निकाला, सारथी भी हाथ मैं सुन्दर चाबुक लेकर बैठा । श्रेणिक राजा के पास आकर श्रेष्ठ धार्मिक रथ सुसज्जित हो जाने का निवेदन किया । और बैठने के लिए विज्ञप्ति की । [९९] श्रेणिक राजा भिंभिसार यानचालक से पूर्वोक्त बात सुनकर हर्षिततुष्टित हुआ । स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ...यावत् कल्पवृक्ष समान अलंकृत एवं विभूषित होकर वह श्रेणिक नरेन्द्र...यावत्...स्नानगृह से नीकला । चेलणादेवी के पास आया और चेलणा देवी को कहाहे देवानुप्रिये ! श्रमण भगवान महावीर...यावत्...गुणशील चैत्य में बिराजमान है...वहां जाकर उनको वन्दन नमस्कार, सत्कार, सन्मान करने चले । वे कल्याणरूप, मंगलभूत, देवाधिदेव, ज्ञानी की पर्युपासना करेंगे, उनकी पर्युपासना यह और आगामी भवों के हितके लिए, सुखके लिए, कल्याण के लिए, मोक्ष के लिए और भवोभव के सुख के लिए होगी । [१००] राजा श्रेणिक से यह कथन सुनकर चेलणादेवी हर्षित हुई, संतुष्ट हुई...यावत्...स्नानगृह में जाकर स्नान करके बलिकर्म किया, कौतुक-मंगल किया, अपने सुकुमार पैरो में झांझर, कमर में मणिजडित कन्दोरा, गले में एकावलीहार, हाथ में कडे और कंकण, अंगुली में मुद्रिका, कंठ से उरोज तक मरकतमणि का त्रिसराहार धारण किया । कान में पहने हुए कुंडल से उनका मुख शोभायमान था । श्रेष्ठ गहने और रत्नालंकारो से वह विभूषित थी । सर्वश्रेष्ठ रेशम का ऐसा सुंदर और सुकोमल वल्कल का रमणीय उत्तरीय धारण किया था । सर्वऋतु में विकसीत ऐसे सुन्दर सुगन्धी फुलो की माला पहने हुए, काला अगरु इत्यादि धूप से सुगंधीत वह लक्ष्मी सी शोभायुक्त वेशभूषावाली चेलणा अनेक कुब्ज यावत् चिलाती दासीओ के वृन्द से धीरी हुई-उपस्थान शाला में राजा श्रेणिक के पास आई । [१०१] तब श्रेणिक राजा चेलणादेवी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ में आरूढ हुआ...यावत्...भगवान महावीर के पास आये...यावत्...भगवन् को वन्दन नमस्कार करके पर्युपासना करने लगे । उस वक्त भगवान महावीरने ऋषि, यति, मुनि, मनुष्य और देवो की पर्षदा में तथा श्रेणिक राजाभिभिसार और रानी चेलणा यावत् पर्षदा को धर्मदेशना सुनाई । पर्षदा और राजा श्रेणिक वापिस लौटे । [१०२] उस वक्त राजा श्रेणिक एवं चेलणा देवी को देखकर कितनेक निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थी के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि अरे ! यह श्रेणिक राजा महती ऋद्धिवाला यावत् परमसुखी है, वह स्नान, बलिकर्म, तिलक, मांगलिक, प्रायश्चित करके सर्वालंकार से विभूषित होकर चेलणा देवी के साथ मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भुगत रहा है । हमने देव लोक के देव तो नहीं देखे, हमारे सामने तो यही साक्षात् देव है । यदी इस सुचरित तप, नियम, ब्रह्मचर्य का अगर कोई कल्याणकारी विशिष्ट फल हो तो हम भी भावि में इस प्रकार के औदारिक मानुषिक भोग का सेवन करे । कितनेक ने सोचा कि अहो ! यह चेलणा देवी महती ऋद्धिवाली यावत् परम सुखी है-यावत्-सर्व अलंकारे से विभुषित होकर श्रेणिक राजा के साथ औदारिक मानुषिक कामभोग का सेवन करती हुई विचरती है । हमने
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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