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________________ दशाश्रुतस्कन्ध-६/४७ १५५ उनकी रक्षा के लिए पाँव उठा लेता है, पाँव सिकुड़ लेता है । या टेढ़े पाँव रखकर चलता है (उस तरह से जीव रक्षा करता है) जीव व्याप्त मार्ग छोड़कर मुमकिन हो तो दुसरे विद्यमान मार्ग पर चलता है । जयणापूर्वक चलता है लेकिन पूरी तरह जाँच किए बिना सीधी राह पर नहीं चलता, केवल ज्ञाति-वर्ग के साथ उसके प्रेम-बंधन का विच्छेद नहीं होता । __ इसलिए उसे ज्ञाति के लोगो में भिक्षा वृत्ति के लिए जाना कल्पे । (मतलब की वो रिश्तेदार के वहाँ से आहार ला शकता है ।) स्वजन-रिश्तेदार के घर पहुँचे उससे पहले चावल बन गए हो और मूंग की दाल न हुई हो तो चावल लेना कल्पे लेकिन मूंग की दाल लेना न कल्पे यदि पहले मैंग की दाल हुई हो और चावल न हुए हो तो मूंग की दाल लेना कल्पे लेकिन चावल लेना न कल्पे । यदि उनके पहुंचने से पहले दोनों तैयार हो जो तो दोनों लेना कल्पे यदि उनके पहुँचने से पहले दोनों में से कुछ भी न हुआ हो तो दो में से कुछ भी लेना न कल्पे । यानि वो पहुँचे उससे पहले जो चीज तैयार हो वो लेना कल्पे और उनके जाने के बाद बनाई कोई चीज लेना न कल्पे । जब वो (श्रमणभूत) उपासक गृहपति के कुल (घर) में आहार ग्रहण करने की इच्छा से प्रवेश करे तब उसे इस तरह से बोलना चाहिए-"प्रतिमाधारी श्रमणोपासक को भिक्षा दो ।" इस तरह के आचरण पूर्वकविचरते उस उपासक को देखकर शायद कोई पूछे, “हे आयुष्मान् तुम कौन हो ?" वो बताओ । तब उसे पूछनेवाले को कहना चाहिए कि, “मैं प्रतिमाधारी श्रमणोपासक हूँ।" इस तरह के आचरण पूर्वक विचरते वह जघन्य से एक, दो या तीन दिन से, उत्कृष्ट ११ महिने तक विचरण करे । यह ग्यारहवीं (श्रमणभूत नामक) उपासक प्रतिमा । इस प्रकार वो स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपासक प्रतिमा (श्रावक को करने की विशिष्ट ११ प्रतिज्ञा) बताई है । उस प्रकार मैं (तुम्हें) कहता हूँ । दसा-६-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (दसा-७-भिक्षु-प्रतिमा) इस दसा का नाम भिक्षु-प्रतिमा है । जिस तरह इसके पूर्व की दसा में श्रावक-श्रमणोपासक की ११ प्रतिमा का निरुपण किया है वैसे यहां भिक्षुकी १२-प्रतिमा बताई है । यहाँ भी ‘प्रतिमा' शब्द का अर्थ विशिष्ट प्रतिज्ञा ऐसा ही समझना । [४८] हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्व-मुख से मैंने ऐसा सुना है इस (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह-भिक्षुप्रतिमा बताई है । उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह भिक्षु प्रतिमा कौन-सी बताई है ? उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से कही बारह भिक्षु प्रतिमा इस प्रकार है-एक मासिकी, द्विमासिकी, त्रिमासिकी, चर्तुमासिकी, पंचमासिकी, छ मासिकी, सात मासिकी, पहली सात रात्रि-दिन, दुसरी सात रात्रि-दिन, तीसरी सात रात्रि-दिन, अहोरात्रि की और एकरात्रि की । [४९] मासिकी भिक्षु प्रतिमा को धारण करनेवाले साधु काया को वोसिरा के तथा शरीर के ममत्व भाव के त्यागी होते है । देव-मानव या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई उपसर्ग आता है । उसे वो सम्यक् तरह से सहता है । उपसर्ग करनेवाले को क्षमा करते है, अदीन भाव
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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