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________________ १३८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मे) और अन्तिम उष्ण काल में (आषाड़ मास में) गाँव के बाहर यावत् सन्निवेश, वन, वनदुर्ग, पर्वत. पर्वतदर्ग में यह प्रतिमा धारण करना कल्पे, भोजन करके प्रतिमा ग्रहण करे तो १४ भक्त से पूरी हो यानि छ उपवास के बाद पारणा करे, खाए बिना पड़िमा करने से १६ भक्त से यानि साँत उपवास से पूरी हो । यह प्रतिमा वहने से दिन में जितनी पिशाब आए वो दिन में पी जाए । रात में आए तो न पीए । यानि यदि वो पिशाब जीव वीर्य-चीकनाई रज सहित हो तो परठवे और रहित हो तो पीए । उसी तरह जो-जो पिशाब थोड़े या ज्यादा नाप में आए वो पीए । यह छोटी पिशाब प्रतिमा बताई जो सूत्र में कहने के मुताबिक, यावत् पालन करते हुए साधु विचरे । २४३] बड़ी पिशाब प्रतिमा (अभिग्रह) अपनानेवाले साधु को उपर बताए अनुसार विधि से प्रतिमा वहन करनी हो । फर्क इतना कि भोजन करके प्रतिमा वहे तो, ७-उपवास और भोजन किए बिना ८-उपवास, बाकी सभी विधि छोटी प्रतिमा अनुसार मानना । [२४४] अन्न-पानी की दत्ति की अमुक संख्या लेनेवाले साधु को पात्र धारक गृहस्थ के घर आहार के लिए प्रवेश वाद यात्रा में वो गृहस्थ अन्न की जितनी दत्ति दे उतनी दत्ति कहलाए । अन्न-पानी देते हुए धारा न तूटे वो एक दत्ति, उस साधु को किसी दातार वाँस की छाब में, वस्त्र से, चालणी से, पात्र उठाकर साधु को ऊपर से दे तब धारा तूटे नही तब तक सबको एक दत्ति कहते है । यदि कईं खानेवाले हो तो सभी अपना आहार ईकट्ठा कर दे तब हाथ ऊपर करके रखे तब तक सब को मिलकर एक ही दत्ति होती है । [२४५] जिस साधु ने पानी की दत्ति का अभिग्रह किया है वो गृहस्थ के वहाँ पानी लेने जाए तब एक पात्र ऊपर से पानी देने के लिए उठाया है उन सबको धारा न तूटे तब तक एक दत्ति कहते है । (आदि सर्व हकीकत ऊपर के सूत्र २४४ की आहार की दत्ति मुताबिक जानना ।) [२४६-२४७] अभिग्रह तीन प्रकार के बताए, सफेद अन्न लेना, काष्ठ पात्र में सामने से लाकर दे वो हाथ से या बरतन से दे तो जो कोइ ग्रहे, जो कोई दे, यदि कोई चीज को मुख में रखे वो चीज ही लेनी चाहिए । वो दुसरे प्रकार से तीन अभिग्रह । [२४८] दो प्रकार से (भी) अभिग्रह बताए है । (१) जो हाथ में ले वो चीज लेना (२) जो मुख में रखे वो चीज लेना - ईस प्रकार मैं (तुम्हें) कहता हूँ । उद्देशक-९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (उद्देशक-१०) [२४९] दो प्रतिमा (अभिग्रह) वताए है । वो इस प्रकार-जव मध्य चन्द्र प्रतिमा और वज्र मध्य चन्द्र प्रतिमा ।। __जव मध्य चन्द्र प्रतिमाधारी साधु एक महिने तक काया की ममता का त्याग करते है । जो कोई देव या तिर्यंच सम्बन्धी अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्ग उत्पन्न हो जिसमें वंदननमस्कार, सत्कार-सन्मान, कल्याण-मंगल, देवसर्दश आदि अनुकूल और दुसरा कोई दंड, अस्थि, जोतर या नेतर के चलने से काया से उपसर्ग करे वो प्रतिकूल । वो सर्व उपसर्ग उत्पन्न हो उस समभाव से, खमें, तितिक्षा करे, दीनता रहित खमे ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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