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________________ १३२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद प्रकल्प - निसीह अध्ययन भूल जाए तो उसे पूछो कि हे आर्य ! किस कारण से तुम आचार प्रकल्प अध्ययन भूल गए बिमारी से या प्रमाद से ? यदि वो ऐसा कहे कि बिमारी से नहीं लेकिन प्रमाद से भूल गए तो उसे जावज्जीव के लिए पदवी मत देना यदि ऐसा कहे कि बिमारी से भूल गए प्रमाद से नहीं तो फिर से पाठ दो और पदवी भी दो लेकिन यदि वो पढूँगा ऐसा कहकर पढ़ाई न करे या पहले का याद न करे तो उसे पदवी देना न कल्पे । [१४३-१४४] स्थविर साधु उम्र होने से आचार प्रकल्प अध्ययन भूल जाए तब यदि फिर से अध्ययन याद करे तो उसे आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना कल्पे । यदि उसे याद न आए तो पदवी देना धारण करना न कल्पे, वो स्थविर यदि शक्ति हो तो बैठेबैठे आचार प्रकल्प याद करे और शक्ति न हो तो सोते-सोते या बैठकर भी याद करे । [ १४५ - १४६ ] यदि साधु-साध्वी सांभोगिक हो ( गोचरी - शय्यादि उपधि आपस में लेने-देने की छूट हो वैसे एक मांडलीवाले सांभोगिक कहलाते है ।) उन्हें कोई दोष लगे तो अन्योन्य आलोचना करना कल्पे, यदि वहाँ कोई उचित आलोचना दाता हो तो उनके पास आलोचना करना कल्पे । यदि वहाँ कोई उचित न हो तो आपस में आलोचना करना कल्पे, लेकिन वो सांभोगिक साधु आलोचना करने के बाद एक दुसरे की वैयावच्च करना न कल्पे । यदि वहाँ कोई दुसरा साधु हो तो उनसे वैयावच्च करवाए । यदि न हो तो बिमारी आदि की कारण से आपस में वैयावच्च करवाए । [१४७] साधु या साध्वी को रात में या संध्या के वक्त लम्बा साँप डँस ले तब साधु स्त्री के पास या साध्वी पुरुष से दवाई करवाए ऐसा अपवाद मार्ग में स्थविर कल्पी को कल्पे ऐसे अपवाद का सेवन करनेवाला स्थविर कल्पी को परिहार तप प्रायश्चित् भी नहीं आता । यह स्थविर कल्प का आचार कहा । जिन कल्पी को इस तरह अपवाद मार्ग का सेवन न कल्पे, यह आचार जिनकल्पी का बताया । उद्देशक - ५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण उद्देशक- ६ [१४८] जो किसी साधु अपने रिश्तेदार के घर जाना चाहे तो स्थविर को पूछे बिना जाना न कल्पे, पूछने के बाद भी यदि जो स्थविर आन्ना दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे । यदि आज्ञा बिना जाए तो जितने दिन रहे उतना छेद या तप प्रायश्चित् आता है । अल्पसूत्री या आगम के अल्पज्ञाता को अकेले ही अपने रिश्तेदार के वहाँ जाना न कल्पे । दुसरे बहुश्रुत या कई आगम के ज्ञाता के साथ रिश्तेदार के वहाँ जाना कल्पे । यदि पहले चावल हुए हो लेकिन दाल न हुई हो तो चावल लेना कल्पे लेकिन दाल लेना न कल्पे । यदि पहले दाल हुई हो और जाने के बाद चावल बने तो दाल लेना कल्पे । लेकिन चावल लेना न कल्पे दोनों पहले से ऊतारे गए हो तो दोनों लेना कल्पे और एक भी चीज न हुई हो तो कुछ भी लेना न कल्पे यानि साधु के जाने से पहले जो कुछ तैयार हो वो सब कल्पे और जाने के बाद तैयार हो ऐसा कोई भी आहार न कल्पे । [१४९] आचार्य-उपाध्याय को गण के विषय में पाँच अतिशय बताए है । उपाश्र में पाँव घिसकर पुंजे या विशेष प्रमार्जे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता, उपाश्रय में मल
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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