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________________ १२८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [७८-८०] जो साधु गच्छ को छोड़कर जाए, फिर मैथुन सेवन करे, सेवन करके फिर दीक्षा ले तो उसे दीक्षा लेने के बाद तीन साल तक आचार्य से गणावच्छेदक तक का पदवी देना या धारण करना न कल्पे । तीन साल बीतने के बाद चौथे साल स्थिर हो, उपशान्त हो, क्लेष से निवर्ते, विषय से निवर्ते ऐसे साधु को आचार्य से गणावच्छेदक तक की छह पदवी देना या धारण करना कल्पे, लेकिन यदि गणावच्छेदक गणावच्छेदक की पदवी छोडे बिना मैथुनधर्म का सेवन करे तो जावजीव के लिए उसे आचार्य से गणावच्छेदक में से एक भी पदवी देना या धारण करना न कल्पे, लेकिन यदि वो गणावच्छेदक की पदवी छोडकर मैथुन सेवन करे तो तीन साल तक उसे पदवी देना न कल्पे, तीन साल बीतने के बाद चौथे साल वो स्थिर, उपशान्त, विषय, कषाय से निवर्तन किया हो तो आचार्य यावत् गणावच्छेदक की पदवी देना या धारण करना कल्पे । [८१-८२] आचार्य-उपाध्याय उनका पद छोड़े बिना मैथुन सेवन करे वो जावज्जीव के लिए उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक के छह पदवी देना या धारण करना न कल्पे, लेकिन यदि वो पदवी छोड़कर जाए, फिर मैथुन धर्म सेवन करे तो उसे तीन साल तक आचार्य पदवी देना या धारण करना न कल्पे लेकिन चौथा साल बैठे तब यदि वो स्थिर, उपशान्त, कषायविषय रहित हुआ हो तो उसे आचार्य आदि पदवी देना या धारण करना कल्पे । [८३-८७] यदि कोई साधु गच्छ में से नीकलकर विषय सेवन के लिए द्रव्यलिंग छोड़ देने के लिए देशान्तर जाए मैथुन सेवन करके फिर से दीक्षा ले । तीन साल तक उसे आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना न कल्पे, तीन साल पूरा होने से चौथा साल बैठे तब यदि वो साधु स्थिर-उपशान्त-विषय-कषाय से निवर्तित हो तो उन्हे पदवी देना-धारण करना कल्पे, यदि गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय अपनी पदवी छोडे बिना द्रव्यलिंग छोड़कर असंयमी हो जाए तो जावज्जीव आचार्य-उपाध्याय पदवी देना या धारण करना न कल्पे, यदि पदवी छोडकर जाए और पुनःदीक्षा ग्रहण करे तो तीन साल पदवी देना न कल्पे आदि सर्वे पूर्ववत् जानना । [८८-९४] साधु जो किसी एक या ज्यादा, गणावच्छेदक, आचार्य, उपाध्याय या सभी बहुश्रुत हो, कई आगम के ज्ञाता हो । कई गाढ़-आगाढ़ की कारण से माया-कपट सहित झूठ बोले, असत्य भाखे उस पापी जीव को जावजीव के लिए आचार्य-उपाध्याय-प्रवर्तक, स्थविर गणि या गणावच्छेदक की पदवी देना या धारण करना न कल्पे । उद्देशक-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (उद्देशक-४) [९५-९६] आचार्य-उपाध्याय को गर्मी या शीतकाल में अकेले विचरना न कल्पे, खुद के सहित दो का साथ विचरना कल्पे । [९७-९८] गणावच्छेदक को खुद के सहित दो लोगों को गर्मी या शीतकाल में विचरना न कल्पे, खुद के सहित तीन को विचरना कल्पे । [९९-१००] आचार्य-उपाध्याय को खुद के सहित दो को वर्षावास रहना न कल्पे, तीन को कल्पे ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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