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________________ निशीथ-२०/१३९४ १०७ होने योग्य पाप स्थान का प्रयोजन - वजह-हेतु सह सेवन किया जाए तो २० रात का ज्यादा प्रायश्चित् आता है मतलब कि पहले के दो महिने और २० रात के अलावा दुसरे दो महिने और २० रात का प्रायश्चित् आता है उसके बाद उसके जैसी ही गलती की हो तो अगले १० अहोरात्र का यानि कि कुल तीन मास का प्रायश्चित् आता है । [१३९५-१३९८] (ऊपर के सूत्र में तीन मास का प्रायश्चित् बताया) उसी मुताबिक फिर से २० रात्रि से १० रात्रि से क्रम से बढ़ते-बढ़ते चार मास, चार मास बीस दिन, पाँच मास यावत् छ मास तक प्रायश्चित् आता है लेकिन छह मास से ज्यादा प्रायश्चित् नहीं आता। [१३९९-१४०५] छ मास प्रायश्चित् योग परिहार-पाप स्थान का सेवन से छ मास का प्रायश्चित् आता है वो प्रायश्चित् वहन करन के लिए रहे साधु बिच में मोह के उदय से दुसरा एकमासी प्रायश्चित् योग्य पाप सेवन करे फिर गुरु के पास आलोचना करे तब दुसरे १५ दिन का प्रायश्चित दिया जाए यानि कि प्रयोजन-आशय से कारण से छ मास के आदि, मध्य या अन्त में गलती करनेवाले को न्यानुधिक ऐसा कुछ देढ़ मास का ज्यादा प्रायश्चित् आता है । उसी तरह पाँच, चार, तीन, दो, एक मास के प्रायश्चित् वहन करनेवाले को कुल देढ मास का ज्यादा प्रायश्चित् आता है वैसा समज लेना । [१४०६-१४१४] देढ़ मास प्रायश्चित् योग्य पाप सेवन के निवारण के लिए स्थापित साधु को वो प्रायश्चित् वहन करते वक्त यदि आदि-मध्य या अन्त में प्रयोजन-आशय या कारण से मासिक प्रायश्चित् योग्य पापकर्म का सेवन करे तो दुसरे पंद्रह दिन का प्रायश्चित् देना यानि कि दो मास का प्रायश्चित् होता है । उसी तरह से (ऊपर कहने के मुताबिक) दो मासवाले को ढ़ाई मास, ढाई मास वाले को तीन मास, यावत् साड़े पाँच मास वाले को छ मास का प्रायश्चित् परिपूर्ण करना होता है। [१४१५-१४२०] ढ़ाई मास के प्रायश्चित् को योग्य पाप सेवन के निवारण के लिए स्थापित यानि कि उतने प्रायश्चित् का वहन कर रहे साधु को यदि किसी आशय या कारण से उसी प्रायश्चित् काल के बीच यदि दो मास प्रायश्चित् योग्य पाप का सेवन किया जाए तो ओर २० रात का आरोपण करना यानि ३ मास और पाँच रात का प्रायश्चित् आता है । ३ मास पाँच रात मध्य से मासिक प्रायश्चित् योग्य गलतीवाले को १५ दिन का यानि कि ३ मास २० रात का प्रायश्चित् । ३ मास २० रात मध्य से दो मासिक प्रायश्चित् योग्य गलतीवाले को ओर २० रात यानि ४ मास १० रात का प्रायश्चित् । ४ मास १० रात मध्य से मासिक प्रायश्चित् योग्य गलतीवाले को ओर १५ रात का यानि कि पाँच मास में ५ रात कम प्रायश्चित्-पाँच मास में पाँच रात कम, मध्य से दो मासिक प्रायश्चित्, योग्य भूलवाले को ज्यादा २० रात यानि कि साड़े पाँच मास का प्रायश्चित् । ___ साड़े पाँच मास के परिहार-तप में स्थापित साधु को बीच में आदि-मध्य या अन्त में प्रयोजन आशय या कारण से यदि मासिक प्रायश्चित् योग्य गलती करे तो ओर पाक्षिक प्रायश्चित् आरोपण करने से अन्यूनाधिक ऐसे छ मास का प्रायश्चित् आता है ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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