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________________ निरयावलिका-१/१९ १४५ कूणिक राजा समस्त ऋद्धि-यावत् कोलाहल के साथ जहाँ सीमांतप्रदेश था, वहाँ आया । चेटक राजा से एक योजन की दूरी पर उसने भी स्कन्धावारनिवेष किया । तदनन्तर दोनों राजाओं ने रणभूमि को सज्जित किया, सज्जित करके रणभूमि में अपनीअपनी जय-विजय के लिए अर्चना की । इसके बाद कूणिक राजा ने ३३००० हाथियों यावत् तीस कोटि पैदल सैनिकों से गरुड-व्यूह की रचना की । गरुडव्यूह द्वारा स्थ-मूसल संग्राम प्रारम्भ किया । इधर चेटक राजा ने ५७००० हाथियों यावत् सत्तावन कोटि पदातियों द्वारा शकटव्यूह की रचना की और रचना करके शकटव्यूह द्वारा स्थ-मूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ । तब दोनों राजाओं की सेनाएं युद्ध के लिए तत्पर हो यावत् आयुधों और प्रहरणों को लेकर हाथों में ढालों को बांधकर, तलवारें म्यान से बाहर निकालकर, कंधों पर लटके तूणीरों से, प्रत्यंचायुक्त धनुषों से छोड़े हुए बाणों से, फटकारते हुए बायें हाथों से, जोर-जोर से बजती हुई जंघाओं में बंधी हुई घंटिकाओं से, बजती हुई तुरहियों से एवं प्रचंड हुंकारों के महान् कोलाहल से समुद्रगर्जना जैसी करते हुए सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों से, परस्पर अश्वारोही अश्वारोहियों से, गजारूढ गजारूढों से, स्थी रथारोहियों से और पदाति पदातियों से भिड़ गए। दोनों राजाओं की सेनाएं अपने-अपने स्वामी के शासनानुराग से आपूरित थीं । अतएव महान् जनसंहार, जनवध, जनमर्दन, जनभय और नाचते हुए रुंड-मुंडों से भयंकर रुधिर का कीचड़ करती हुई एक दूसरे से युद्ध में झूझने लगीं । तदनन्तर कालकुमार गरुडव्यूह के ग्यारहवें भाग में कूणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम करता हुआ हत और मथित हो गया, इत्यादि जैसा भगवान् ने काली देवी से कहा था, तदनुसार यावत् मृत्यु को प्राप्त हो गया । अतएव गौतम ! इस प्रकार के आरम्भों से, अशुभ कार्यों के कारण वह काल कुमार मरण करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है । [१९] गौतम स्वामी ने पुनः प्रश्न किया-भदन्त ! वह काल कुमार चौथी पृथ्वी से निकलकर कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो आढ्य कुल हैं, उनमें जन्म लेकर दृढ़प्रतिज्ञ के समान सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, यावत् परिनिर्वाण को प्राप्त होगा और समस्त दुःखों का अंत करेगा । 'इस प्रकार आयुष्मन् जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है । अध्ययन-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (अध्ययन-२-सुकाल ) [२०] भदन्त ! यदि श्रमण यावत् मुक्ति संप्राप्त भगवान महावीर ने निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो द्वितीय अध्ययन का क्या भाव प्रतिपादन किया है ? -आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी । वहाँ पूर्णभद्र चैत्य था । कूणिक वहाँ का राजा था । पद्मावती उसकी पटरानी थी । उस चम्पानगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कूणिक राजा की सौतेली माता सुकाली नाम की रानी थी जो सुकुमाल शरीर आदि से सम्पन्न थी । उस सुकाली देवी का पुत्र सुकाल राजकुमार था । वह सुकोमल अंग-प्रत्यंग वाला आदि विशेषणों से युक्त था । शेष सर्व कथन कालकुमार अनुसार
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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