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________________ १४३ निरयावलिका-१/१८ काल आदि दस कुमारों ने कूणिक राजा के इस विचार को विनयपूर्वक स्वीकार किया । कूणिक राजा ने उन काल आदि दस कुमारों से कहा- देवानुप्रियो ! आप लोग अपनेअपने राज्य में जाओ, और प्रत्येक स्नान यावत् प्रायश्चित्त आदि करके श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ होकर प्रत्येक अलग-अलग ३००० हाथियों, ३००० रथों, ३००० घोड़ों और तीन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर समस्त ऋद्धि-वैभव यावत् सब प्रकार के सैन्य, समुदाय एवं आदरपूर्वक सब प्रकार की वेशभूषा से सजकर, सर्व विभूति, सर्व सम्भ्रम, सब प्रकार के सुगंधित पुष्प, वस्त्र, गंध, माला, अलंकार, सर्व दिव्य वाद्यसमूहों की ध्वनि प्रतिध्वनि, महान् ऋद्धि-विशिष्ट वैभव, महान् धुति, महाबल, शंख, ढोल, पटह, भेरी, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज, मृदंग, दुन्दुभि के घोष की ध्वनि के साथ अपने-अपने नगरों से प्रस्थान करो और प्रस्थान करके मेरे पास आकर एकत्रित होओ। तब वे कालादि दसों कुमार कूणिक राजा के इस कथन को सुनकर अपने-अपने राज्यों को लौटे । प्रत्येक ने स्नान किया, यावत् जहाँ कूणिक राजा था, वहाँ आए और दोनों हाथ जोड़कर यावत् बधाया । काल आदि दस कुमारों की उपस्थिति के अनन्तर कूणिक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और यह आज्ञा दी - 'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तीरत्न को प्रतिकर्मित कर, घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से सुगठित चतुरंगिणी सेना को सुसन्नद्ध-करो, यावत् से सेवक आज्ञानुरूप कार्य सम्पन्न होने की सूचना देते हैं । तत्पश्चात् कूणिक राजा जहाँ स्नानगृह था वहाँ आया, मोतियों के समूह से युक्त होने से मनोहर, चित्र-विचित्र मणि-रत्नों से खचित फर्श वाले, रमणीय, स्नान - मंडप में विविध मणि-रत्नों के चित्रामों से चित्रित स्नानपीठ पर सुखपूर्वक बैठकर उसने शुभ, पुष्पोदक से, सुगंधित एवं शुद्ध जल से कल्याणकारी उत्तम स्नान-विधि से स्नान किया । अनेक प्रकार के सैंकड़ों कौतुक किए तथा कल्याणप्रद प्रवर स्नान के अंत में रुएँदार काषायिक मुलायम वस्त्र से शरीर को पौंछा । नवीन - महा मूल्यवान् दूष्यरत्न को धारण किया; सरस, सुगंधित गोशीर्ष चंदन से अंगों का लेपन किया । पवित्र माला धारण की, केशर आदि का विलेपन किया, मणियों और स्वर्ण से निर्मित आभूषण धारण किए । हार, अर्धहार, त्रिसर और लम्बे-लटकते कटिसूत्र से अपने को सुशोभित किया; गले में ग्रैवेयक आदि आभूषण धारण किए, अंगुलियों में अंगूठी पहनीं । मणिमय कंकणों, त्रुटितों एवं भुजबन्दों से भुजाएँ स्तम्भित हो गईं, कुंडलों से उसका मुख चमक गया, मुकुट से मस्तक देदीप्यमान हो गया । हारों से आच्छादित उसका वक्षस्थल सुन्दर प्रतीत हो रहा था । लंबे लटकते हुए वस्त्र को उत्तरीय के रूप में धारण किया। मुद्रिकाओं से अंगुलियां पीतवर्ण-सी दिखती थीं । सुयोग्य शिल्पियों द्वारा निर्मित, स्वर्ण एवं मणियों के सुयोग से सुरचित, विमल महार्ह, सुश्लिष्ट, उत्कृष्ट, प्रशस्त आकारयुक्त; वीरवलय धारण किया । कल्पवृक्ष के समान अलंकृत और विभूषित नरेन्द्र कोरण्ट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र को धारण कर, दोनों पावों में चार चामरों से विजाता हुआ, लोगों द्वारा मंगलमय जय-जयकार किया जाता हुआ, अनेक गणनायकों, दंडनायकों, राजा, ईश्वर, यावत् संधिपाल, आदि से घिरा हुआ, स्नानगृह से बाहर निकला यावत् अंजनगिरि के शिखर के समान विशाल उच्च गजपति पर वह नरपति आरूढ हुआ ।
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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