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________________ निरयावलिका-१/११ १३७ चाहा, किन्तु वह गर्भ नष्ट नहीं हुआ, न गिरा, न गला और न विध्वस्त ही हुआ । तदनन्तर जब चेलना देवी उस गर्भ को यावत् विध्वस्त करने में समर्थ नहीं हुई तब श्रान्त, क्लान्त, खिन्न और उदास होकर अनिच्छापूर्वक विवशता से दुस्सह आर्त्त ध्यान से ग्रस्त हो उस गर्भ को परिवहन करने लगी । [१२] तत्पश्चात् नौ मास पूर्ण होने पर चेलना देवी ने एक सुकुमार एवं रूपवान् बालक का प्रसव किया - पश्चात् चेलना देवी को विचार आया- 'यदि इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावलि का मांस खाया है, तो हो सकता है कि यह बालक संवर्धित होने पर हमारे कुल का भी अंत करने वाला हो जाय ! अतएव इस बालक को एकान्त उकरड़े में फेंक देना ही उचित होगा ।' इस प्रकार का संकल्प करके अपनी दास- चेटी को बुलाया, उससे कहा- तुम जाओ और इस बालक को एकान्त में उकरड़ें में फेंक आओ ।' तत्पश्चात् उस दास चेटी ने चेलना देवी की इस आज्ञा को सुनकर दोनों हाथ जोड़ यावत् चेलना देवी की इस आज्ञा को विनयपूर्वक स्वीकार किया । वह अशोक वाटिका में गई और उस बालक को एकान्त में उकरड़े पर फेंक दिया । उस बालक के एकान्त में उकरड़े पर फेंके जाने पर वह अशोक वाटिका प्रकाश से व्याप्त हो गई । इस समाचार को सुनकर राजा श्रेणिक अशोक वाटिका में पहुंचा । वहाँ उस बालक को देखकर क्रोधित हो उठा यावत् रुष्ट, कुपित और चंडिकावत् रौद्र होकर दाँतों को मिसमिसाते हुए उस बालक को उसने हथेलियों में ले लिया और जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ आया । चेलना देवी को भले-बुरे शब्दों से फटकारा, पुरुष वचनों से अपमानित किया और धमकाया। फिर कहा- 'तुमने क्यों मेरे पुत्र को एकान्त- उकरड़े पर फिकवाया ?' चेलना देवी को भलीबुरी सौगंध - दिलाई और कहा- देवानुप्रिये ! इस बालक की देखरेख करती हुई इसका पालनपोषण करो और संवर्धन करो । तब चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के इस आदेश को सुनकर लज्जित, प्रताडित और अपराधिनी-सी हो कर दोनों हाथ जोड़कर श्रेणिक राजा के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार किया और अनुक्रम से उस बालक की देखरेख, लालन-पालन करती हुई वर्धित करने लगी । [१३] एकान्त उकरड़े पर फैंके जाने के कारण उस बालक की अंगुली का आगे का भाग मुर्गे की चोंच से छिल गया था और उससे बार-बार पीव और खून बहता रहता था । इस कारण वह बालक वेदना से चीख-चीख कर रोता था । उस बालक के रोने को सुन और समझकर श्रेणिक राजा बालक के पास आता और उसे गोदी में लेता । लेकर उस अंगुली को मुख में लेता और उस पीव और खून को मुख से चूस लेता, ऐसा करने से वह बालक शांति का अनुभव कर चुप शांत हो जाता । इस प्रकार जब जब भी वह बालक वेदना के कारण जोर-जोर से रोने लगता, तब-तब श्रेणिक राजा उसी प्रकार चूसता यावत् वेदना शांत हो जाने से वह चुप हो जाता था । तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने तीसरे दिन चन्द्र सूर्य दर्शन का संस्कार किया, यावत् ग्यारह दिन के बाद बारहवें दिन इस प्रकार का गुण - निष्पन्न नामकरण किया- इस बालक का नाम 'कूणिक' हो । इस प्रकार उस बालक के माता-पिता ने उसका
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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