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________________ निस्यावलिका-१/७ १३३ [७] तब एक बार अपने कुटुम्ब - परिवार की स्थिति पर विचार करते हुए काली देवी के मन में इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ- 'मेरा पुत्रकुमार काल ३००० हाथियों आदि को लेकर यावत् रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ है । तो क्या वह विजय प्राप्त करेगा अथवा नहीं ? वह जीवित रहेगा अथवा नहीं ? शत्रु को पराजित करेगा या नहीं ? क्या मैं काल कुमार को जीवित देख सकूंगी ?' इत्यादि विचारों से वह उदास हो गई । निरुत्साहित - सी होती हुई यावत् आर्तध्यान में मग्न हो गई । उसी समय में श्रमण भगवान् महावीर का चम्पा नगरी में पदार्पण हुआ । वन्दना - नमस्कार करने एवं धर्मोपदेश सुनने के लिए जन परिषद् निकली । तब वह काली देवी भी इस संवाद को जान कर हर्षित हुई और उसे इस प्रकार का आन्तरिक यावत् संकल्प-विचार उत्पन्न हुआ । तथारूप श्रमण भगवन्तों का नामश्रवण ही महान् फलप्रद हैं तो उनके समीप पहुँच कर वन्दन - नमस्कार करने के फल के विषय में तो कहना ही क्या है ? यावत् मैं श्रमण भगवान् के समीप जाऊँ, यावत् उनकी पर्युपासना करूँ और उनसे पूर्वोल्लिखित प्रश्न पूछँ । काली रानी ने कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाया । आज्ञा दी - 'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही धार्मिक कार्यों में प्रयोग किये जाने वाले श्रेष्ठ रथ को जोत कर लाओ ।" तत्पश्चात् स्नान कर एवं बलिकर्म कर काली देवी यावत् महामूल्यवान् किन्तु अल्प आभूषणों से विभूषित हो अनेक कुब्जा दासियों यावत् महत्तरकवृन्द को साथ लेकर अन्तःपुर से निकली । अपने परिजनों एवं परिवार से परिवेष्टित होकर जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ पहुँची । तीर्थंकरों के छत्रादि अतिशयों-प्रातिहार्यों के दृष्टिगत होते ही धार्मिक श्रेष्ठ रथ को रोका । धार्मिक श्रेष्ठ रथ से नीचे उतरी और श्रमण भगवान् महावीर बिराजमान थे, वहाँ पहुँची । तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा करके वन्दना - नमस्कार किया और वहीं बैठ कर सपरिवार भगवान् की देशना सुनने के लिए उत्सुक होकर विनयपूर्वक पर्युपासना करने लगी । तत्पश्चात् श्रमण भगवान् ने यावत् उस काली देवी और विशाल जनपरिषद् को धर्मदेशना सुनाई इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर से धर्मश्रवण कर और उसे हृदय में अवधारित कर काली रानी ने हर्षित, संतुष्ट यावत् विकसितहृदय होकर श्रमण भगवान् को तीन वार वंदन - नमस्कार करके कहा - भदन्त ! मेरा पुत्र काल कुमार रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ है, तो क्या वह विजयी होगा अथवा नहीं ? यावत् क्या मैं काल कुमार को जीवित देख सकूंगी ? श्रमण भगवान् ने काली देवी से कहा- काली ! तुम्हारा पुत्र कालकुमार, जो यावत् कूणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम में जूझते हुए वीरवरों को आहत, मर्दित, घातित करते हुए और उनकी संकेतसूचक ध्वजा - पताकाओं को भूमिसात् करते हुए -दिशा विदिशाओं को लोकशून्य करते हुए रथ से रथ को अड़ाते हुए चेटक राजा के सामने आया । तब चेटक राजा क्रोधाभिभूत हो यावत् मिस मिसाते हुए धनुष को उठाया । वाण को हाथ में लिया, धनुष पर बाण चढ़ाया, उसे कान तक खींचा और एक ही वार में आहत करके, रक्तरंजित करके निष्प्राण कर दिया । अतएव हे काली वह काल कुमार मरण को प्राप्त हो गया है। अब तुम काल कुमार को जीवित नहीं देख सकती हो । • श्रमण भगवान् महावीर के इस कथन को सुनकर और हृदय में धारण करके काली
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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