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________________ १२८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करते हैं । सूर्य के विमान से चन्द्रमा का विमान ८० योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है । तारारूप ज्योतिश्चक्र १०० योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है । वह चन्द्रविमान से २० योजन दूरी पर, ऊँचाई पर गति करता है। [३४०] भगवन् ! जम्बूद्वीप में अठ्ठाईस नक्षत्रों में कौनसा नक्षत्र सर्व मण्डलों के भीतर, कौनसा नक्षत्र समस्त मण्डलों के बाहर, कौनसा नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे और कौनसा नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है ? गौतम ! अभिजित् नक्षत्र सर्वाभ्यन्तर-मण्डल में से, मूल नक्षत्र सब मण्डलों के बाहर, भरणी नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे तथा स्वाति नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है । भगवन् ! चन्द्रविमान का संस्थान - कैसा है ? गौतम ! ऊपर की ओर मुँह कर रखे हुए आधे कपित्थ के फल के आकार का है । वह संपूर्णतः स्फटिकमय है । अति उन्नत है । सूर्य आदि सर्व ज्योतिष्क देवों के विमान इसी प्रकार के समझना । चन्द्रविमान कितना लम्बाचौड़ा तथा ऊँचा है ? [३४१] गौतम ! चन्द्रविमान ५६ / ६१ योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा २८ /६१ योजन ऊंचा है । [३४२] सूर्यविमान ४८ /६१ योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा २४ / ६१ योजन ऊंचा है । [३४३] ग्रहों, नक्षत्रों तथा ताराओं के विमान क्रमशः २ कोश, १ कोश तथा १/ २ कोश विस्तीर्ण हैं । ऊँचाई उन से आधी होती है । [३४४] भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव परिवहन करते हैं ? गौतम ! सोलह हजार, चन्द्रविमान के पूर्व में श्वेत, सुभग, जनप्रिय, सुप्रभ, शंख के मध्यभाग, जमे हुए दहीं, गाय के दूध के झाग तथा रजतनिकर, उज्ज्वल दीप्तियुक्त, स्थिर, लष्ट, प्रकोष्ठक, वृत्त, पीवर, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, तीक्ष्ण, दंष्ट्राओं प्रकटित मुखयुक्त, रक्तोत्पल, अत्यन्त कोमल तालुयुक्त, घनीभूत, शहद की गुटिका सदृश पिंगल वर्ण के, पीवर, मांसल, उत्तम जंघायुक्त, परिपूर्ण, विपुल, कन्धों से युक्त, मृदु, विशद, सूक्ष्म, प्रशस्त, लक्षणयुक्त, उत्तम वर्णमय, कन्धों पर उगे अयालों से शोभित उच्छ्रित, सुनमित, सुजात, आस्फोटित, वज्रमय नखयुक्त, वज्रमय दंष्ट्रायुक्त, वज्रमय दाँतों वाले, अग्नि में तपाये हुए स्वर्णमय जिह्वा तथा तालु से युक्त, तपनीय स्वर्णनिर्मित योक्त्रक - के साथ सुयोजित, कामगम, प्रीतिगम, मनोगम, मनोरम, अमितगति, अपरिमित बल, वीर्य, पुरुषार्थ तथा पराक्रम से युक्त, उच्च गम्भीर स्वर से सिंहनाद करते हुए, अपनी मधुर, मनोहर ध्वनि द्वारा गगन मण्डल को आपूर्ण करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार सिंहरूपधारी देव विमान के पूर्वी पार्श्व को परिवहन किये चलते हैं । चन्द्रविमान के दक्षिण में सफेद वर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त यावत् को सुशोभित करते हुए चार हजार गजरूपधारी देव विमान के दक्षिणी पार्श्व को परिवहन करते हैं । चन्द्र - विमान के पश्चिम में सफेद वर्णयुक्त, यावत् दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार वृषभ-रूपधारी देव विमान के पश्चिमी पार्श्व का परिवहन करते हैं । चन्द्र - विमान के उत्तर में श्वेतवर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त यावत् दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार अश्वरूपधारी देव विमान के उत्तरी पार्श्व को परिवहन करते हैं ।
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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