SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - ५/२१४ देव-देवियों से संपरिवृत वे दिव्य विमानों से नीचे उतरती हैं । सब प्रकार की समृद्धि लिए, जहाँ तीर्थंकर तथा उनकी माता होती हैं, वहाँ आती हैं। तीन प्रदक्षिणाएँ करती हैं, हाथ जोड़े, अंजलि बाँधे, तीर्थंकर की माता से कहती हैं'रत्नकुक्षिधारिके, जगत्प्रदीपदायिके, हम आपको नमस्कार करती है । समस्त जगत् के लिए मंगलमय, नेत्रस्वरूप, मूर्त, समस्त जगत् के प्राणियों के लिए वात्सल्यमय, हितप्रद मार्ग उपदिष्ट करने वाली, विभु, जिन, ज्ञानी, नायक, बुद्ध, बोधक, योग-क्षेमकारी, निर्मम, उत्तम कुल, क्षत्रिय जाति में उद्भूत, लोकोत्तम, की आप जननी हैं । आप धन्य, पुण्य एवं कृतार्थ - हैं । अधोलोकनिवासिनी हम आठ प्रमुख दिशाकुमारिकाएँ भगवान् तीर्थंकर का जन्महोत्सव मनायेंगी अतः आप भयभीत मत होना । ९९ 1 यों कहकर वे ईशान कोण में जाती हैं । वैक्रिय समुद्घात द्वारा अपने आत्म-प्रदेशों को शरीर से बाहर निकालती हैं । उन्हें संख्यात योजन तक दण्डाकार परिणत करती हैं । फिर दूसरी बार वैक्रिय समुद्घात करती हैं, संवर्तक वायु की विकुर्वणा करती हैं । उस शिव, मृदुल, अनुद्भूत, भूमितल को निर्मल, स्वच्छ करनेवाले, मनोहर, पुष्पों की सुगन्ध से सुवासित, तिर्यक्, वायु द्वारा भगवान् तीर्थंकर के योजन परिमित परिमण्डल को चारों ओर से सम्मार्जित, करती हैं । जैसे एक तरुण, बलिष्ठ, युगवान्, युवा, अल्पातंक, नीरोग, स्थिराग्रहस्त, दृढपाणिपाद, पृष्ठान्तोरुपरिणत, अहीनांग, जिसके कंधे गठीले, वृत्त एवं वलित हुए, हृदय की ओर झुके हुए मांसल एवं सुपुष्ट हो, चमड़े के बन्धनों के युक्त मुद्गर आदि उपकरण ज्यों जिनके अंग मजबूत हों, दोनों भुजाएँ दो एक-जैसे ताड़ वृक्षों की ज्यों हों, जो गर्त आदि लांघने में, कूदने में, तेज चलने में, प्रमर्दन से कड़ी वस्तु को चूर-चूर कर डालने में सक्षम हो, जो छेक, दक्ष, प्रष्ठ, कुशल, मेघावी, निपुण, ऐसा कर्मकर लड़का खजूर के पत्तों से बनी बड़ी झाड़ू को, दण्डयुक्त लेकर राजमहल के आंग, राजान्तःपुर, देव मन्दिर, सभा, प्रपा, जलस्थान, आराम, उद्यान, बाग को सब ओर से झाड़ कर साफ कर देता है, उसी प्रकार वे दिक्कुमारियाँ संवर्तक वायु द्वारा तिनके, पत्ते, लकड़ियाँ, कचरा, अशुचि, अचोक्ष, पूतिक, दुर्गन्धयुक्त पदार्थों को उठाकर, परिमण्डल से बाहर एकान्त में डाल देती हैं । फिर वे दिक्कुमारिकाएँ भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता के पास आती हैं। उनसे न अधिक समीप तथा न अधिक दूर अवस्थित हो आगान और परिगान करती हैं । I [२१५] उस काल, उस समय, ऊर्ध्वलोकवास्तव्या-आठ दिक्कुमारिकाओं के, जो अपने कूटों पर, अपने भवनों में, अपने उत्तम प्रासादों में अपने चार हजार सामानिक देवों, यावत् अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर देव - देवियों से संपरिवृत, नृत्य, गीत एवं तुमुल वाद्यध्वनि के बीच विपुल सुखोपभोग में अभिरत होती हैं । [२१६] यह दिकृकुमारियां है— मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, वारिषेणा तथा बलाहका । सुवत्सा, वत्समित्रा, [२१७] तब उन देवी के आसन चलित होते है, शेष पूर्ववत् । वे दिक्कुमारिकाए भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती है- देवानुप्रिये ! हम उर्ध्वलोकवासिनी दिक्कुमारिकाएं भगवान् का जन्म महोत्सव मनायेंगी । अतः आप भयभीत मत होना । यों कहकर वे --ईशान कोण में चली जाती हैं । यावत् वे आकाश में बादलों की विकुर्वणा करती हैं, वे (बादल)
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy