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________________ प्रज्ञापना - १७/१/४४९ ६७ कथन के समान कृष्णलेश्यायुक्त मनुष्यों का कथन करना । ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में कृष्ण, नील और कापोत लेश्या को लेकर प्रश्न नहीं करना । इसी प्रकार कृष्णलेश्या वालों के समान नीललेश्यावालों को भी समझना । कापोतलेश्यावाले नैरयिकों से वाणव्यन्तरों तक का सप्तद्वारादिविषयक कथन भी इसी प्रकार समझना । विशेषता यह कि कापोतलेश्या वाले नैरयिकों का वेदना के विषय में प्रतिपादन समुच्चय नारकों के समान जानना । भगवन् ! तेजोलेश्यावाले असुरकुमारों के समान आहारादि विषयक प्रश्न - गौतम ! समुच्चय असुरकुमारों का आहारादिविषयक कथन के समान तेजोलेश्याविशिष्ट असुरकुमारों को समझना । विशेषता यह कि वेदना में ज्योतिष्कों समान कहना । (तेजोलेश्यावाले) पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों का कथन औधिक के समान करना । विशेषता यह कि क्रियाओं की अपेक्षा से तेजोलेश्यावाले मनुष्यों में कहना कि जो संयत हैं, वे प्रमत्त और अप्रमत्त दो प्रकार के हैं तथा सरागसंयत और वीतरागसंयत, (ये दो भेद तेजोलेश्या वाले मनुष्यों में) नहीं होते । तेजोलेश्या की अपेक्षा से वाणव्यन्तरों का कथन असुरकुमारों के समान समझना । इसी प्रकार तेजोलेश्याविशिष्ट ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में भी पूर्ववत् कहना । शेष आहारादि पदों के विषय में पूर्वोक्त असुरकुमारों के समान ही समझना । तेजोलेश्या वालों की तरह पद्मलेश्यावालों के लिये भी कहना । विशेष यह कि जिन जीवों में पद्मलेश्या होती है, उन्हीं में उसका कथन करना । शुक्ललेश्या वालों का आहारादिविषयक कथन भी इसी प्रकार है, किन्तु उन्हीं जीवों में कहना, जिनमें वह होती है। तथा जिस प्रकार औघिकों का गम कहा है, उसी प्रकार सब कथन करना । इतना विशेष है कि पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों, मनुष्यों और वैमानिकों में ही होती है, शेष जीवों में नहीं । पद - १७ उद्देशक - २ [४५१] भगवन् ! लेश्याएँ कितनी हैं ? गौतम ! छह- कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । [४५२] नैरयिकों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? गौतम ! तीन, कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या । भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! छह, कृष्ण यावत् शुक्ललेश्या । एकेन्द्रिय जीवों में चार लेश्याएँ होती हैं । कृष्णलेश्या से तेजोलेश्या तक । पृथ्वीकायिक अपकायिक और वनस्पतिकायिक में भी चार लेश्याएँ है । तेजस्कायिक, वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में नैरयिकों के समान जानना । भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? गौतम ! छह, -कृष्ण यावत् शुक्ललेश्या । सम्मूर्च्छिम- पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक में नारकों के समान समझना । गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में छह लेश्याएँ होती हैं- कृष्ण यावत् शुक्ललेश्या । गर्भज तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों में ये ही छह लेश्याएँ होती हैं । मनुष्यों में छह लेश्याएँ होती हैं । सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में नारकों के समान जानना । गर्भज मनुष्यों एवं मानुषी स्त्री में छह लेश्याएँ होती हैं । भगवन् ! देवों में कितनी लेश्याए होती हैं ? छह । देवियों में चार लेश्याएँ होती हैं,
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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