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________________ प्रज्ञापना-१६/-/४४१ नैरयिकक्षेत्रोपपातगति सात प्रकार की है रत्नप्रभापृथ्वी० यावत् अधस्तनसप्तमपृथ्वीनैरयिकक्षेत्रोपपातगति । तिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपातगति पांच प्रकार की है, एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकक्षेत्रोपपातगति । मनुष्यक्षेत्रोपपातगति दो प्रकार की है । सम्मूर्छिम० और गर्भज-मनुष्यक्षेत्रोपपातगति । देवक्षेत्रोपपातगति चार प्रकार की है, भवनपति० यावत् वैमानिक देव क्षेत्रोपपातगति । सिद्धक्षेत्रोपपातगति अनेक प्रकार की है, जम्बूद्वीप में, भरत और ऐवत क्षेत्र में सब दिशाओं में, सब विदिशाओं में, क्षुद्र हिमवान् और शिखरी वर्षधरपर्वत में, हैमवत और हैरण्यवत वर्ष में, शब्दापाती और विकटापाती वृत्तवैताढ्यपर्वत में, महाहिमवन्त और रुक्मी नामक वर्षधर पर्वतों में, हरिवर्ष और रम्यकवर्ष में, गन्धापाती और माल्यवन्त वृत्तवैताढ्यपर्वत में, निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत में, पूर्वविदेह और अपरविदेह में, देवकुरु और उत्तरकुरु में तथा मन्दरपर्वत में, इन सब की सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है । लवणसमुद्र में, धातकीपण्डद्वीप में, कालोदसमुद्र में, पुष्करवरद्वीपादार्द्ध में इन सबकी सब दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है । भवोपपातगति कितने प्रकार की है ? चार प्रकार की, नैरयिक से देवभवोपपातगति पर्यन्त । नैरयिक भवोपपातगति सात प्रकार की है, इत्यादि सिद्धों को छोड़ कर सब भेद कहना। क्षेत्रोपपातगति के समान भवोपपातगति में कहना । नोभवोपपातगति किस प्रकार की है ? दो प्रकार की, पुद्गल-नोभवोपपातगति और सिद्ध-नोभवोपपातगति । पुद्गलनोभवोपपातगति क्या है ? जो पुद्गल परमाणु लोक के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त तक एक ही समय में चला जाता है, अथवा पश्चिमी चरमान्त से पूर्वी चरमान्त तक, अथवा चरमान्त से उत्तरी या उत्तरी चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त तक तथा ऊपरी चरमान्त से नीचले एवं नीचले चरमान्त से ऊपरी चरमान्त तक एक समय में ही गति करता है; यह पुद्गलनोभवोपपातगति कहलाती है । सिद्ध-नोभवोपपातगति दो प्रकार की है, अनन्तरसिद्ध० और परम्परसिद्ध-नोभवोपपातगति । अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपातगति पन्द्रह प्रकार की है । तीर्थसिद्धअनन्तरसिद्ध० यावत् अनेकसिद्ध-अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपातगति । परम्परसिद्ध-नोभवोपपातगति अनेक प्रकार की है । अप्रथमसमयसिद्ध-नोभवोपपातगति, एवं द्विसमयसिद्ध-नोभवोपपातगति यावत् अन्तसमयसिद्ध-नोभवोपपातगति । विहायोगति कितने प्रकार की है ? सत्तरह प्रकार की । स्पृशद्गति, अस्पृशद्गति, उपसम्पद्यमानगति, अनुपसम्पद्यमानगति, पुद्गलगति, मण्डूकगति, नौकागति, नयगति, छायागति, छायानुपातगति, लेश्यागति, लेश्यानुपातगति, उद्दिश्यप्रविभक्तगति, चतुःपुरुषप्रविभक्तगति, वक्रगति, पंकगति और बन्धनविमोचनगति । वह स्पृशद्गति क्या है ? परमाणु पुद्गल की अथवा द्विप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की एक दूसरे को स्पर्श करते हुए जो गति होती है, वह स्पृशद्गति है । अस्पृशद्गति किसे कहते हैं ? पूर्वोक्त परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की परस्पर स्पर्श किये विना ही जो गति होती है, वह अस्पृशद्गति है। उपसम्पद्यमानगति वह है, जिसमें व्यक्ति राजा, युवराज, ईश्वर, तलवार, माडम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति या सार्थवाह को आश्रय करके गमन करता हो । इन्हीं पूर्वोक्त (राजा आदि) का परस्पर आश्रय न लेकर जो गति होती है, वह अनुपसम्पद्यमान गति है ।। पुद्गलगति क्या है ? परमाणु पुद्गलों की यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की गति
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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