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________________ प्रज्ञापना-१२/-/४०३ ४३ औदारिकशरीरों के समान इनके विषय में भी कहना । भगवन् ! असुरकुमारों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं । काल की अपेक्षा से असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों में वे अपहृत होते हैं । क्षेत्र की अपेक्षा से असंख्यात श्रेणियों (जितने) हैं । (वे श्रेणियां) प्रतर का असंख्यातवाँ भाग (प्रमाण हैं ।) उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल का संख्यातवाँ भाग (प्रमाण) है । जो मुक्त शरीर हैं, उनके विषय में मुक्त औदारिक शरीरों के समान कहना । (इनके) (बद्ध-मुक्त) आहारकशरीरों के विषय में, इन्हीं के (बद्ध-मुक्त) दोनों प्रकार के औदारिकशरीरों की तरह प्ररूपणा करनी चाहिए । तैजस और कार्मण शरीरों उन्हीं के वैक्रियशरीरों के समान समझ लेना। स्तनितकुमारों तक शरीरों को भी इसी प्रकार कहना । [४०४] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो, बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं । काल से-(वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्र से वे असंख्यात लोक-प्रमाण हैं । जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं । कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्रतः अनन्तलोकप्रमाण हैं । (द्रव्यतः वे) अभव्यों से अनन्तगुणे हैं, सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं । पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे उनको नहीं होते । जो मुक्त हैं, वे उनके औदारिकशरीरों के समान कहना | उनके आहारकशरीरों को उनके वैक्रियशरीरों के समान समझना । तैजस-कार्मणशरीरों का उन्हीं के औदारिकशरीरों के समान समझना । इसी प्रकार अप्कायिकों और तेजस्कायिकों को भी जानना । भगवन् ! वायुकायिक जीवों के औदारिकशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो-बद्ध और मुक्त। इन औदारिकशरीरों को पृथ्वीकायिकों के अनुसार समझना । वायुकायिकों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं । (कालतः) यदि समय-समय में एक-एक शरीर का अपहरण किया जाए तो पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण काल में उनका पूर्णतः अपहरण होता है । किन्तु कभी अपहरण किया नहीं गया है (उनके) मुक्त शरीरों को पृथ्वीकायिकों की तरह समझना । आहारक, तैजस और कार्मण शरीरों को पृथ्वीकायिकों की तरह कहना । वनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा पृथ्वीकायिकों की तरह समझना । विशेष यह है कि उनके तैजस और कार्मण शरीरों का निरूपण औधिक तैजस-कार्मण-शरीरों के समान करना । भगवन् ! द्वीन्द्रियजीवों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध औदारिकशरीर हैं, वे असंख्यात हैं । कालतः-(वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्रतः-असंख्यात श्रेणि-प्रमाण हैं । (वे श्रेणियाँ) प्रतर के असंख्यात भाग (प्रमाण) हैं । उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची, असंख्यात कोटाकोटी योजनप्रमाण है । (अथवा) असंख्यात श्रेणि वर्ग-मूल के समान होती है । द्वीन्द्रियों के बद्ध औदारिक शरीरों से प्रतर अपहृत किया जाता है । काल की अपेक्षा से असंख्यात उत्सर्पिणीअवसर्पिणी-कालों से (अपहार होता है) । क्षेत्र की अपेक्षा से अंगुल-मात्र प्रतर और आवलिका के असंख्यात भाग प्रतिभाग से (अपहार होता है) । जो मुक्त औदारिक शरीर हैं, वे औधिक मुक्त औदारिक शरीरों के समान कहना । (उनके) वैक्रिय और आहारकशरीर बद्ध नहीं होते ।
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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