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________________ २४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद असुरकुमारों की तरह स्तनितकुमारों तक की उद्वर्तना समझ लेना । [३४७] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव अनन्तर उद्धर्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । इनके उपपात के समान इनकी उद्धर्तना भी कहना चाहिए । इसी प्रकार अप्कायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों (की भी उद्धर्तना कहना ।) इसी प्रकार तेजस्कायिक और वायुकायिक को भी कहना । विशेष यह कि मनुष्य में निषेध करना । [३४८] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यज्योनिक अनन्तर उद्धर्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभा यावत् अधः-सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं । इनके उपपात के समान इनकी उद्धर्तना भी कहना । विशेष यह कि ये असंख्यातवर्षों की आयुवालों में भी उत्पन्न होते हैं । . (भगवन् !) यदि (वे) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज में ? गौतम ! दोनों में । इनके उपपात के समान उद्वर्तना भी कहना। विशेष यह कि अकर्मभूमिज, अन्तीपज और असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं तो सभी देवों में उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं तो सभी (भवनपतियों) में उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और सहस्रारकल्प तक के वैमानिक देवों में निरन्तर उत्पन्न होते हैं । [३४९] भगवन् ! मनुष्य अनन्तर उद्धर्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! क्या (मनुष्य) नैरयिक आदि सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं ? हा । गौतम ! होते हैं, कहीं भी इनके उत्पन्न होने का निषेध नहीं करना, यावत् कई मनुष्य सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण पाते हैं और सर्वदुःखों का अन्त भी करते हैं । [३५०] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म एवं ईशान देवलोक के वैमानिक देवों की उद्धर्तन-प्ररूपणा असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए 'च्यवन करते हैं' कहना । भगवन् ! सनत्कुमार देव अनन्तर च्यवन करके, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? असुरकुमारों के समान समझना । विशेष यह कि एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते । इसी प्रकार सहस्रार देवों तक कहना । आनत देवों से अनुत्तरौपपातिक देवों तक इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न नहीं होते, मनुष्यों में भी पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। [३५१] भगवन् ! आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव का आयु बांधता है ? गौतम ! नियम से छह मास आयु शेष रहने पर । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक कहना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव का आयु बांधते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं, सोपक्रम आयुवाले और निरुपक्रम आयुवाले । जो निरुपक्रम आयुवाले हैं, वे नियम से आयुष्य का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं तथा सोपक्रम आयुवाले कदाचित् आयु का
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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