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________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति-१७/-/१२१ २२९ आभरण के धारक और अव्यवच्छित नयानुसार स्व-स्व आयुष्य काल की समाप्ति होने पर ही पूर्वोत्पन्न का च्यवन होता है और नए उत्पन्न होते है । प्राभृत-१७-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (प्राभृत-१८) [१२२] हे भगवन् ! इन ज्योतिष्को की उंचाइ किस प्रकार कही है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियां है-एक कहता है-भूमि से उपर एक हजार योजन में सूर्य स्थित है, चंद्र १५०० योजन उर्ध्वस्थित है । दुसरा कहता है कि सूर्य २००० योजन उर्ध्वस्थित है, चंद्र २५०० योजन उर्ध्वस्थित है । इसी तरह दुसरे मतवादीयों का कथन भी समझ लेना-सभी मत में एक-एक हजार योजन की वृद्धि कर लेना यावत् पच्चीसवां मतवादी कहता है कि-भूमि से सूर्य २५००० योजन उर्ध्वस्थित है और चंद्र २५५०० योजन उर्ध्वस्थित है । भगवंत इस विषय में फरमाते है कि इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम भूमि भाग से उंचे ७९० योजन पर तारा विमान, ८०० योजन पर सूर्यविमान, ८८० योजन उंचे चंद्रविमान, ९०० योजन पर सर्वोपरी ताराविमान भ्रमण करते है । सर्वाधस्तन तारा विमान से उपर ११० योजन जाकर सर्वोपरी ताराविमान भ्रमण करता है, सूर्य विमान से ८० योजन उंचाइ पर चंद्रविमान भ्रमण करता है, इसका पूर्व-पश्चिम व्यास विस्तार ११० योजन भ्रमण क्षेत्र है, तिर्छ असंख्यात योजन का भ्रमणक्षेत्र है ।। [१२३] हे भगवन् ! चंद्र-सूर्य देवो के अधोभाग या उर्ध्वभाग के तारारुप देव लघु या तल्य होते है ? वे तारारुप देवो का जिस प्रकार का तप-नियम-ब्रह्मचर्य आदि पर्वभव में होते है, उस-उस प्रकार से वे ताराविमान के देव लघु अथवा तुल्य होते है । चंद्र-सूर्यदेवो के अधोभाग या उर्ध्वभाग स्थित तारा देवो के विषय में भी इसी प्रकार से लघुत्व या तुल्यत्व समझ लेना । [१२४] एक-एक चंद्ररूप देवो का ग्रह-नक्षत्र एवं तारारूप परिवार कितना है ? एकएक चंद्र देव का ग्रह परिवार ८८ का और नक्षत्र परिवार-२८ का होता है । [१२५] एक-एक चंद्र का तारारुप परिवार ६६९०५ है । [१२६] मेरु पर्वत की चारो तरफ ११२१ योजन को छोड़ कर ज्योतिष्क देव भ्रमण .. करते है, लोकान्त से ज्योतिष्क देव का परिभ्रमण ११११ योजन है । [१२७] जंबूद्वीप के मंडल में नक्षत्र के सम्बन्ध में प्रश्न-अभिजीत नक्षत्र जंबूद्वीप के सर्वाभ्यन्तर मंडल में गमन करता है, मूल नक्षत्र सर्वबाह्य मंडल में, स्वाति नक्षत्र सर्वोपरी मंडल में और भरणी नक्षत्र सर्वाधस्तन मंडल में गमन करते है। [१२८] चंद्रविमान किस प्रकार के संस्थानवाला है ? अर्धकपिठ्ठ संस्थानवाला है, वातोध्धूत धजावाला, विविध मणिरत्नो से आश्चर्यकारी, यावत् प्रतिरूप है, इसी प्रकार सूर्य यावत् ताराविमान का वर्णन समझना । ___ वह चंद्र विमान आयामविष्कम्भ से छप्पन योजन एवं एकसठांश योजन भाग प्रमाण है, व्यास को तीनगुना करने से इसकी परिधि होती है और बाहल्य अठ्ठाइस योजन एवं
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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