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________________ २१२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद योग करके एकरात और एकदिन तक साथ रहकर, शाम को अश्विनी नक्षत्र के साथ चन्द्र को समर्पण करके अनुपरिवर्तित होता है । अश्विनी नक्षत्र भी पश्चातभागा-समक्षेत्र और तीश मुहूर्त्तवाला है, शाम को चन्द्रमा के साथ योग करके एक रात्रि और दुसर दिन नक व्याप्त रहकर, चन्द्र को भरणी नक्षत्र से समर्पित करके अनुपरिवर्तन करता है । भरणी नक्षत्र रात्रिभागा-अर्द्धक्षेत्र और पन्द्रह मुहूर्त का है, वह शामको चन्द्रमा से योग करके एक रात्रि तक साथ रहता है, कृतिका नक्षत्र पूर्वभागा-समक्षेत्र और तीश मुहूर्त का है, वह प्रातःकाल में चन्द्र के साथ योग करके एक दिन और एक रात्रि तक साथ रहता है, प्रातःकाल में रोहिणी नक्षत्र को चंद्र से समर्पित करता है । रोहिणी को उत्तराभाद्रपद के समान, मृगशिर को घनिष्ठा के समान, आर्द्रा को शतभिषा के समान, पूनर्वसू को उत्तराभाद्रपद के समान, पुष्य को घनिष्ठा के समान, अश्लेषा को शतभिषा के समान, मघा को पूर्वा फाल्गुनी के समान, उत्तरा फाल्गुनी को उत्तराभाद्रपद के समान, अनुराधा को ज्येष्ठा के समान, मूल और पूर्वाषाढा को पूर्वाभाद्रपद समान, उत्तराषाढा को उत्तराभाद्रपद के समान इत्यादि समझलेना। | प्राभृत-१०-प्राभृतप्राभृत-५ | [५१] कुल आदि नक्षत्र किस प्रकार कहे है ? बारह नक्षत्र कुल संज्ञक है-घनिष्ठा, उत्तराभाद्रपदा, अश्विनी, कृतिका, मृगशीर्ष, पुष्य, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल और उत्तराषाढा । बारह नक्षत्र उपकुल संज्ञक कहे है-फाल्गुनी, श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसू, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा और पूर्वाषाढा । चार नक्षत्र कुलोपकुल संज्ञक है-अभिजीत, शतभिषा, आर्द्रा और अनुराधा । | प्राभृत-१०-प्राभृतप्राभृत-६ ] [५२] हे भगवंत् ! पूर्णिमा कौन सी है ? बारह पूर्णिमा और बारह अमावास्या कही है । बारह पूर्णिमा इस प्रकार है-श्राविष्ठी, प्रौष्ठपदी, आसोजी, कार्तिकी, मृगशिर्षी, पौषी, माघी, फाल्गुनी, चैत्री, वैशाखी, ज्येष्ठामूली और आषाढी । अब कौनसी पूनम किन नक्षत्रो से योग करती है यह बताते है-श्राविष्ठी पूर्णिमा-अभिजीत्, श्रवण और घनिष्ठा से, प्रौष्ठपदी पूर्णिमा-शतभिषा, पूर्वाप्रौष्ठपदा और उत्तराप्रोष्ठपदा से, आसोयुजीपर्णिमा-रेवती और अश्विनी से, कार्तिकीपूर्णिमा-भरणी और कृतिका से, मृगशिर्षीपूर्णिमा-रोहिणी और मृगशिर्ष से, पौषीपूर्णिमाआर्द्रा, पुनर्वसू और पुष्य से, माघीपूर्णिमा-अश्लेषा और मघा से, फाल्गुनी पूर्णिमा-पूर्वा और उत्तराफाल्गुनी से, चैत्री पूर्णिमा-हस्त और चित्रा से, वैशाखीपूर्णिमा-स्वाति और विशाखा से, ज्येष्ठामूली पूर्णिमा-अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल से और अषाढी पूर्णिमा-पूर्वा तथा उत्तराषाढा नक्षत्र से योग करती है । [५३] श्राविष्ठा पूर्णिमा क्या कुल-उपकुल या कुलोपकुल नक्षत्र से योग करती है ? वह तीनो का योग करती है-कुल का योग करते हुए वह घनिष्ठा नक्षत्र का योग करती है, उपकुल से श्रवणनक्षत्र का और कुलोपकुल से अभिजित नक्षत्र का योग करती है । इसी तरह से आगे-आगे की पूर्णिमा के सम्बन्ध में समझना चाहिए जैसे कि प्रौष्ठपदी पूर्णिमा योग करते हुए कुल से उत्तराप्रौष्ठपदा से, उपकुल से पूर्वा प्रौष्ठपदा से और कुलोपकुल से शतभिषा नक्षत्र
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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