SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति-९/-/४४ २०९ है वही पुद्गल उससे संतापित होते है । संतप्यमान पुद्गल तदनन्तर बाह्य पुद्गलो को संतापित करता है । यही वह समित तापक्षेत्र है । दुसरा कोइ कहता है कि-जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है, वह पुद्गल संतापित नहीं होते, वह असंतप्यमान पुद्गल से अनन्तर पुद्गल भी संतापित नहीं होते, यहीं है वह समित तापक्षेत्र । तीसरा कोइ यह कहता है कि जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है, उनमें से कितनेक पुद्गल संतप्त होते है और कितनेक नहीं होते । जो संतप्त हुए है वे पुद्गल अनन्तर बाह्य पुद्गलो में से किसीको संतापित करते है और किसीको नहीं करते, यहीं है वो समित तापक्षेत्र । भगवंत फरमाते है कि-जो ये चन्द्र-सूर्य के विमानो से लेश्या निकलती है वह बहार के यथोचित आकाशक्षेत्र को प्रकाशीत करती है, उन लेश्या के पीछे अन्य छिन्न लेश्याए होती है, वह छिनलेश्याए बाह्य पुद्गलो को संतापित करती है, यहीं है उसका समित अर्थात् उत्पन्न हुआ तापक्षेत्र । [४५] कितने प्रमाणवाली पौरुषी छाया को सूर्य निवर्तित करता है ? इस विषय में पच्चीश प्रतिपत्तियां है-जो छठे प्राभृत के समान समझलेना । जैसे कि कोइ कहता है कि अनुसमय में सूर्य पौरुषि छाया को उत्पन्न करता है, इत्यादि । भगवंत फरमाते है कि सूर्य से उत्पन्न लेश्या के सम्ब्ध में यथार्थतया जानकर मैं छायोद्देश कहता हुं । इस विषय में दो प्रतिपत्तियां है । एक कहता है कि-ऐसा भी दिन होता है जिसमें सूर्य चार पुरुष प्रमाण छाया को उत्पन्न करता है और ऐसा भी दिन होता है जिसमें दो पुरुष प्रमाण छाया को उत्पन्न करता है । दुसरा कहता है कि दो प्रकार दिन होते है - एक जिसमें सूर्य दो पुरुष प्रमाण छाया उत्पन्न करता है, दुसरा-जिसमें पौरुषीछाया उत्पन्न ही नहीं होती । जो यह कहते है कि सूर्य चार पुरुषछाया भी उत्पन्न करता है और दो पुरुष छाया भीउस मतानुसार - सूर्य जब सर्वाभ्यन्तर मंडल को संक्रमण करके गमन करता है तब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त प्रमाण दिन और जघन्या बारह मुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है, उस दिन सूर्य चार पौरुषीछाया उत्पन्न करता है । उदय और अस्तकाल में लेश्या की वृद्धि करके वहीं सूर्य जब सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है, उत्कृष्टा अठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है तब दो पौरुपीछाया को सूर्य उत्पन्न करता है । जो यह कहते है कि सूर्य चार पौरुपी छाया उत्पन्न करता है और किंचित् भी नहीं उत्पन्न करता - उस मतानुसार - सर्वाभ्यन्तर मंडल को संक्रमण करके सूर्य गमन करता है तब रात्रि-दिन पूर्ववत् ही होते है, लेकिन उदय और अस्तकाल में लेश्या की अभिवृद्धि करके दो पौरुषीछाया को उत्पन्न करते है, जब वह सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है तब लेश्या की अभिवृद्धि किए बिना, उदय और अस्तकाल में किंचित् भी पौरुषी छाया को उत्पन्न नहीं करता । हे भगवन् ! फिर सूर्य कितने प्रमाण की पौरुषीछाया को निवर्तित करता है ? इस विषय में ९६ प्रतिपत्तियां है । एक कहता है कि ऐसा देश है जहां सूर्य एक पौरुषी छाया को निवर्तित करता है । दुसरा कहता है कि सूर्य दो पौरुषीछाया को निवर्तित करता है।...यावत्...९६ पौरुषीछाया को निवर्तित करता है । इनमें जो एक पौरुषीछाया के निवर्तन का कथन करते है, उस मतानुसार-सूर्य के सबसे नीचे के स्थान से सूर्य के प्रतिघात से बहार
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy