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________________ १७ नमो नमो निम्मलदसणस्स | १५/२ | प्रज्ञापना उपांगसूत्र-४/२ हिन्दी अनुवाद (पद-६ व्युत्क्रान्ति [३२६] द्वादश, चतुर्विशति, सान्तर, एकसमय, कहाँ से ? उद्धर्तना, परभव-सम्बन्धी आयुष्य और आकर्ष, ये आठ द्वार (इस व्युत्क्रान्तिपद में) हैं । [३२७] भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक । भगवन् ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना । भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित है । गौतम ! नरकगति समान जानना । भगवन् ! देवगति कितने काल तक उपपात से विरहित है ? गौतम ! नरकगति समान जानना । भगवन् ! सिद्धगति कितने काल तक सिद्धि से रहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह महीनों तक । ___ भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उद्वर्तना से विरहित है ? गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहर्त तक । इसी तरह तिर्यंचगति, मनुष्यगति एवं देवगति का उद्वर्तना विरह भी नरकगति समान जानना । [३२८] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक । शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्टतः सात रात्रि-दिन तक उपपात से विरहित रहते हैं । वालुकापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक उपपात से विरहित रहते हैं । पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक मास तक उपपातविरहित रहते हैं । धूमप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो मास तक उपपात से विरहित होते हैं । तमःप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चार मास उपपातविरहित रहते हैं । तमस्तमापृथ्वी के नैरयिक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास उपपात से विरहित रहते हैं । । भगवन् ! असुरकुमार कितने काल तक उपपात से विरहित रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक । इसी तरह स्तनितकुमार तक जान लेना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल तक उपपात से विरहित हैं ? गौतम ! प्रतिसमय उपपात से अविरहित हैं । इसी तरह वनस्पतिकायिक तक जानना । द्वीन्द्रिय जीवों का उपपातविरह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त रहता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय में समझना । सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक का उपपातविरह जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहर्त उपपात से विरहित रहते हैं । सम्मूर्छिम मनुष्य जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहर्त उपपात से विरहित कहे हैं । गर्भज मनुष्य जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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