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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति - १०/२०/७६ [ ७६ ] नक्षत्रसंवत्सर बारह प्रकारक का है - श्रावण, भाद्रपद से लेकर आषाढ तक । बृहस्पति महाग्रह बारह संवत्सर में सर्व नक्षत्र मंडल पूर्ण करता है । [७७] युग संवत्सर पांच प्रकार का है। चांद्र, चांद्र, अभिवर्धित, चांद्र और अभिवर्धित । प्रत्येक चान्द्र संवत्सर चौबीस - चौबीस पर्व (पक्ष) के और अभिवर्धित संवत्सर छब्बीस-छब्बीस पर्व के होते है । इस प्रकार सब मिलाकर पंच संवत्सर का एक युग १२४ पर्वो (पक्षी) का होता है । १७१ [७८] प्रमाण संवत्सर पांच प्रकार का है । नक्षत्र, चन्द्र, ऋतु, आदित्य और अभिवर्धित । [७९] लक्षण संवत्सर पांच प्रकार का है । नक्षत्र यावत् अभिवर्द्धित । उसका वर्णन इस प्रकार से है [ ८० ] समग्र नक्षत्र योग करते है, समग्र ऋतु का परिवर्तन होता है, अतिशीत या अतिउष्ण नहीं ऐसे बहुउदक नक्षत्र होते है । [८१] चंद्र सर्व पूर्णमासी में विषमचारी नक्षत्र से योग करता है । कटुक - बहुउदक वालो को चांद्र संवत्सर कहते है । [८२] विषम प्रवाल का परिणमन, ऋतु रहित पुष्प फल की प्राप्ति, वर्षा का विषम बरसना, वह ऋतु संवत्सर का कर्म है । [८३] आदित्य संवत्सर में पृथ्वी और पानी को रस तथा पुष्प फल देता है, अल्प वर्षा से भी सरस ऐसी सम्यक् निष्पत्ति होती है । [८४] अभिवर्द्धित संवत्सर में सूर्य का ताप तेज होता है, क्षणलव दिवस में ऋतु परिवर्तित होती है, निम्नस्थल की पूर्ति होती है [८५] शनिश्चर संवत्सर अठ्ठाइस प्रकार का होता है- अभिजीत, श्रवण यावत् उत्तराषाढा अथवा तीस संवत्सर में शनिश्चर महाग्रह सर्व नक्षत्र मंडलो में परिभ्रमण करता है । प्राभृत-१०- -प्राभृतप्राभृत- २१ [८६] हे भगवन् ! नक्षत्र ज्योतिष्क द्वार किस प्रकार से है ? इस विषय में यह पांच प्रतिपत्तियां है । एक कहता है कि कृत्तिकादि सात नक्षत्र पंच द्वारवाले है, दुसरा मघादि सात को पूर्वद्वारीय कहता है, तीसरा घनिष्ठादि सातको चौथा अश्विनी आदि सात को और पांचवां भरणी आदि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय कहता है । जो कृतिकादि सात को पूर्वद्वारीय कहते है उनके मत से - मघादि सात दक्षिण द्वारीय है, अनुराधादि सात पश्चिमद्वारीय है और घनिष्ठादि सात उत्तरद्वारीय है । जो मघादि सात को पूर्वद्वारीय बताते है, उनके मतानुसार - अनुराधादि सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय है, घनिष्ठादि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय है तथा कृतिकादि सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय है । जो घनिष्ठादि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय बताते है, उनके मतसे - कृतिकादि सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय है, मघादि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय है और अनुराधादि सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय है। जो अश्विनी आदि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय बताते है, उनके मतसे- पुष्यादि सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय है, स्वाति आदि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय है और अभिजीत आदि सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय है । जो भरणी आदि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय बताते है, उनके मतसे - आश्लेषादि
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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