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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति - १/८/३० १५३ कितने परिक्षेपसे युक्त है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियां है । पहला परमतवादी कहता है कि सभी मंडल बाहल्य से एक योजन, आयामविष्कम्भ से ११३३ योजन और परिक्षेप से ३३९९ योजन है । दुसरा बताता है कि सर्वमंडल बाहल्य से एक योजन, आयामविष्कम्भ से ११३४ योजन और परिक्षेप से ३४०२ योजन है । तीसरा मतवादी इसका आयामविष्कम्भ ११३५ योजन और परिक्षेप ३४०५ योजन कहता है । भगवंत प्ररूपणा करते है कि यह सर्व मंडलपद एक योजन के अडतालीश एकसठ्ठांश भाग बाल्य से अनियत आयामविष्कम्भ और परिक्षेपवाले कहे गए है । क्योंकी - यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप समुद्रो से घीरा हुआ है । जब ये सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब वे सभी मंडलपद एक योजन के अडतालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से, ९९६४० योजन विष्कम्भ से और ३१५०८९ योजन से किंचित् अधिक परिक्षेपवाले होते है, उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त का दिन और बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नए संवत्सर को प्राप्त करके प्रथम अहोरात्र में जब अभ्यन्तर अनन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके गति करता है तब वह मंडलपद के एक योजन के अडचत्तालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से, ९९६४५ योजन तथा एक योजन के पैंतीश एकसठ्ठांश भाग आयाम विष्कम्भ से और ३१५१०७ योजन से किंचित् हीन परीक्षेपवाला होता है । दिन और रात्रि प्रमाण पूर्ववत् जानना । वही सूर्य दुसरे अहोरात्र में तीसरे मंडल में निष्क्रमण करके गति करता है तब एक योजन के अडतालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से, ९९६५१ योजन एवं एक योजन के नव एकसठ्ठांश भाग आयामविष्कम्भ से तथा ३१५१२५ योजन परिक्षेप से कहे हुए है । दिन और रात्रि पूर्ववत् । इस प्रकार से इसी उपाय से निष्क्रमीत सूर्य अनन्तर - अनन्तर मंडल में गति करता है । उस समय पांच योजन और एक योजन के पैंतीश एकसठ्ठांश भाग विष्कम्भकी वृद्धि करते करते अठ्ठारह - अठ्ठारह योजन वृद्धि करते सर्वबाह्य मंडल में पहुंचते है । जब वह सूर्य सर्व बाह्य मंडल में उपसंक्रमण करके गति करता है तब वह मंडलपद एक योजन के अडचत्तालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से, १००६६० योजन आयामविष्कम्भ से तथा ३१८३१५ योजन परिक्षेप से युक्त होता है । उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । यह हुए छ मास । इसी प्रकार से वह सूर्य दुसरे छ मास में सर्व बाह्यमंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश करता है । प्रथम अहोरात्र में जब वह सूर्य उपसंक्रमण करके अनन्तर मंडल पदमें प्रविष्ट होता है तब मंडल पद में एक योजन के अडचत्तालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से हानि होती है, १००६५४ योजन एवं एक योजन का छब्बीश एकसठ्ठांश भाग आयामविष्कम्भ से तथा ३१८२५७ योजने परिक्षेपसे युक्त होता है । रात्रि-दिन का प्रमाण पूर्ववत् जानना । प्रविश्यमाण वह सूर्य अनन्तर - अनन्तर एक एक मंडल में एक एक अहोरात्र में संक्रमण करता हुआ पूर्व गणित से सर्वाभ्यन्तर मंडल में पहुंचता है तब वह मंडल पद एक योजन के अडचत्तालीश एकसठ्ठांश भाग बाहल्य से, ९९६४० योजन आयामविष्कंभ से तथा ३१५०७९ परिक्षेप से होता है । शेष पूर्ववत् यावत् यह हुआ आदित्य संवत्सर । यह सर्व मंडलवृत्त एक योजन के अडचत्तालीश एकसट्ठांश भाग बाहल्य से होते है ।
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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