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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-१/२/२३ १४९ दक्षिणार्द्धमंडल की संस्थिति के समान ही उत्तरार्द्धमंडल की संस्थिति समझना । जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर उत्तर अर्द्धमंडल संस्थिति का संक्रमण करके गति करता है तब उत्कृष्ट अट्ठारस मुहूर्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । उत्तरस्थित अभ्यन्तर से दक्षिण की तरफ संक्रमण होता है और दक्षिण से उत्तर की तरफ उपसंक्रमण होता है । इसी तरह इसी उपाय से यावत् सर्वबाह्य दक्षिणार्ध मंडल की संस्थिति प्राप्त करके यावत् दक्षिणदिशा सम्बन्धी सर्वबाह्यमंडल के अनन्तर उत्तरार्धमंडल की संस्थिति को प्राप्त करते है । उत्तर से सर्वबाह्य तीसरी दक्षिणार्धमंडल संस्थिति में गमन करता है । इसी तरह यावत् सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करते है तब दुसरे छह मास होते है । ऐसे दुसरे छ मास परिपूर्ण होते है । यहीं आदित्य संवत्सर है और यहीं आदित्य संवत्सर का पर्यवसान है । | प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-३ | [२४] कौनसा सूर्य, दुसरे सूर्य द्वारा चीर्ण-मुक्त क्षेत्र का प्रतिचरण करता है ? निश्चय से दो सूर्य कहे है भारतीय सूर्य और ऐरवतीय सूर्य । यह दोनो सूर्य त्रीश-त्रीश मुहुर्त प्रमाण से एक अर्द्धमंडल में संचरण करते है । साठ-साठ मुहूर्तों से एक-एक मंडल में संघात करते है । निष्क्रमण करते हुए ये दोनो सूर्य एक दुसरे से चीर्ण क्षेत्र में संचरण नहीं करते किन्तु प्रवेश करते हुए संचरण करते है । यह जंबूद्वीप नामक द्वीप सर्व द्वीप समुद्र से घीरा हुआ है। उसमें यह भारतीय सूर्य, मध्य जंबूद्वीप के पूर्वपश्चिम दिशा से विस्तारयुक्त और उत्तरदक्षिण दिशा में लम्बी जीवा के १२४ विभाग करके, दक्षिणपूर्व के मंडल के चतुर्थ भाग में ९२ संख्यावाले मंडलो में संचार करते है । उत्तरपश्चिम में मंडल के चतुर्थ भाग में ९१ मंडलो को भारतीय सूर्य चीर्ण करता है । यह भारतीय सूर्य, ऐवतीय सूर्य के मंडलो को मध्य जंबूद्वीप के पूर्वपश्चिम लम्बे क्षेत्र को छेद करके उत्तरपूर्व दिग्भाग के मध्य में चर्तुभाग मंडल के ९२ मंडल को व्याप्त करके उसमें प्रतिचरण करता है । इसी प्रकार दक्षिणपूर्व दिशा में चर्तुभाग में ९१ मंडलो को प्रतिचरित करता है । उस समय यह ऐरावतीय सूर्य भारतीय सूर्य से प्रतिचरित दक्षिणपश्चिम मध्य में चतुर्भाग में ९२ मंडलो को प्रतिचरित करता है । और उत्तर पूर्व में ९१ मंडलो को प्रतिचरित करता है । इस तरह निष्क्रमण करते हुए यह दोनो सूर्य परस्पर एक दुसरे के चीर्ण क्षेत्र को प्रतिचरित नहीं करते, किन्तु प्रवेश करते हुए ये दोनो एक दुसरे के चीर्ण क्षेत्र को प्रतिचरित करते है । | प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-४ | [२५] भारतीय एवं ऐवतीय सूर्य परस्पर कितने अन्तर से गति करता है ? अन्तर सम्बन्धि यह छह प्रतिपत्तिया है । कोई एक परमतवादी कहता है कि ये दोनो सूर्य परस्पर एक हजार योजन के एवं दुसरे एकसो तैतीस योजन के अन्तर से गति करते है । कोई एक कहते है कि ये एक हजार योजन एवं दुसरे १३४ योजन अंतर से गति करते है । कोई एक ऐसा कहते है कि यह अंतर एक हजार योजन एवं दुसरा १३५ योजन का है । चौथा अन्य तीर्थ का कथन है कि दोनो सूर्य एक द्वीप-समुद्र के परस्पर अंतर से गति करते है । कोई यह अन्तर दो-दो द्वीप समुद्रो का बतलाते है और छठ्ठा परतीर्थिक दोनो सूर्यो का परस्पर अन्तर तीन-तीन द्वीप समुद्रो का बतलाते है । भगवंत कहते है कि यह दोनो सूर्य की गति का अन्तर नियत
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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