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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-१/-/१४ से १७ १४७ [१४-१७] दसवें प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रो की आवलिका, दुसरे में मुहूर्ताग्र, तीसरे में पूर्व पश्चिमादि विभाग, चौथे में योग, पांचवे में कुल, छठे में पूर्णमासी, सातवें में सन्निपात और आठवे में संस्थिति, नवमें प्राभृत-प्राभृत में ताराओ का परिमाण, दसवे में नक्षत्र नेता, ग्यारहवे में चन्द्रमार्ग, बारहवे में अधिपति देवता और तेरहवे में मुहूर्त, चौदहवे में दिन और रात्रि, पन्दरहवे में तिथियां, सोलहवे में नक्षत्रो के गोत्र, सत्तरहवे में नक्षत्र का भोजन, अट्ठारहवे में सूर्य की चार-गति, उन्नीसवे में मास और बीसवे में संवत्सर, एकवीस में प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रद्वार तथा बाईसवे में नक्षत्रविचय इस तरह दसवें प्राभृत में बाईस अधिकार है । - प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-१ | [१८] आपके अभिप्राय से मुहर्त की क्षय-वृद्धि कैसे होती है ? यह ८१९ मुहर्त एवं एक मुहूर्त का २७/६७ भाग से होती है । [१९] जिस समय में सूर्य सर्वाभ्यन्तर मुहुर्त से निकलकर प्रतिदिन एक मंडलाचार से यावत् सर्वबाह्य मंडल में तथा सर्वबाह्य मंडल से अपसरण करता हुआ सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करता है, यह समय कितने रात्रि-दिन का कहा है ? यह ३६६ रात्रिदिन का है । [२०] पूर्वोक्त कालमान में सूर्य कितने मंडलो में गति करता है ? वह १८४ मंडलो में गति करता है । १८२ मंडलो में दो वार गमन करता है । सर्व अभ्यन्तर मंडल से निकलकर सर्व बाह्य मंडल में प्रविष्ट होता हुआ सूर्य सर्व अभ्यन्तर तथा सर्व बाह्य मंडल में दो बार गमन करता है । [२१] सूर्य के उक्त गमनागमन के दौरान एक संवत्सर में अट्ठारह मुहूर्त प्रमाणवाला एक दिन और अठारहमुहूर्त प्रमाण की एक रात्रि होती है । तथा बारह मुहूर्त का एक दिन और बारह मुहर्त्तवाली एक रात्रि होती है । पहले छ मास में अठ्ठारमुहुर्त की एक रात्रि और बारहमुहूर्त का एक दिन होता है । तथा दुसरे छ मास में अट्ठारह मुहूर्त का दिन और बारह मुहूर्त की एक रात्रि होती है । लेकिन पहले या दुसरे छ मास में पन्द्रह मुहूर्त का दिवस या रात्रि नहीं होती इसका क्या हेतु है ? वह मुझे बताईए । यह जंबूद्वीप नामक द्वीप है । सर्व द्वीप समुद्रो से घीरा हुआ है । जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करके गति करता है, तब परमप्रकर्ष को प्राप्त उत्कृष्ट सर्वाधिक अठारह मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । जब वहीं सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से नीकलकर नयें सूर्यसंवत्सर को आरंभ करके पहले अहोरात्र में सर्वाभ्यन्तर मंडल के अनन्तर मंडल में संक्रमण करके गति करता है तब अट्ठारहमुहूर्त के दिन में दो एक सट्ठांश भाग न्यून होते है और बारहमुहुर्त की रात्रि में दो एकसठ्ठांश भाग की वृद्धि होती है । इसी तरह और एक मंडल में संक्रमण करता है तब चार एकसठ्ठांश मुहूर्त का दिन घटता है और रात्रि बढती है । इसी तरह एक-एक मंडल में आगे-आगे सूर्य का संक्रमण होता है और अट्ठारसमुहूर्त के दिन में दो एकसठ्ठांश दो एकसठ्ठांश मुहूर्त की हानी होती है और उतनी ही रात्रि में वृद्धि होती है । इसी तरह सर्वाभ्यन्तर मंडल से निकलकर सर्व बाह्य मंडल में जब सूर्य संक्रमण करता है तब १८३ रात्रिदिन पूर्ण होते है और तीनसो छासठ मुहूर्त के एकसठ्ठ भाग मुहूर्त प्रमाण
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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