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________________ प्रज्ञापना- २७/-/५४९ ११९ होते हैं । दर्शनावरणीय और अन्तराय कर्म के साथ अन्य कर्मप्रकृतियों में भी पूर्ववत् कहना। वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! बन्धक-वेदक के समान वेद-वेदक के वेदनीय का कथन करना । मोहनीयकर्म का वेदन करता हुआ (एक) जीव, गौतम ! नियम से आठ कर्मप्रकृतियों को वेदता है । इसी प्रकार नारक से वैमानिक पर्यन्त जानना । बहुत्व विवक्षा से भी समझना । पद - २८- "आहारपद" उद्देशक - 9 [५५०] इस उद्देशक में इन ग्यारह पदों हैं- सचित्ताहार, आहारार्थी, कितने काल से ?, क्या आहार ?, सब प्रदेशों से, कितना भाग ?, सभी आहार ( करते हैं ?) (सतैव) परिणत करते हैं ? तथा [५५१] एकेन्द्रियशरीरादि, लोमाहार एवं मनोभक्षी । [५५२] भगवन् ! क्या नैरयिक सचित्ताहारी होते हैं, अचित्ताहारी होते हैं या मिश्राहारी ? गौतम ! वे केवल अचित्ताहारी होते हैं । इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों पर्यन्त जानना । औदारिकशरीरी यावत् मनुष्य सचित्ताहारी भी हैं, अचित्ताहारी भी हैं और मिश्राहारी भी हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं । भगवन् ! नैरयिकों को कितने काल के पश्चात् आहार की इच्छा होती है ? गौतम ! नैरयिकों का आहार दो प्रकार का है । आभोगनिर्वर्तित और अनाभोगनिर्वर्तित । जो अनाभोगनिवर्तित है, उस की अभिलाषा प्रति समय निरन्तर उत्पन्न होती रहती है, जो आभोगनिर्वर्तित है, उस की अभिलाषा असंख्यातसमय के अन्तर्मुहूर्त में उत्पन्न होती है । भगवन् ! नैरयिक कौन-सा आहार ग्रहण करते हैं ? गौतम ! द्रव्यतः - अनन्तप्रदेशी पुद्गलों का आहार ग्रहण करते हैं, क्षेत्रतः - असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ, कालतः:- किसी भी कालस्थिति वाले और भावतः - वर्णवान् गन्धवान्, रसवान और स्पर्शवान् पुद्गलों का आहार करते हैं । भगवन् ! भाव से जिन पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एक वर्ण वाले यावत् क्या वे पंच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! वे स्थानमार्गणा से एक वर्ण वाले यावत् पांच वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं तथा विधान मार्गणा से काले यावत् शुक्ल वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । भगवन् ! वे वर्ण से जिन काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एक गुण यावत् दस गुण काले, संख्यातगुण काले, असंख्यातगुण काले या अनन्तगुण काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! वे एक गुण यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । इसी प्रकार यावत् शुक्लवर्ण में जानना । इसी प्रकार गन्ध और रस की अपेक्षा से भी कहना । जो जीव भाव से स्पर्शवाले पुद्गलों का आहार करते हैं, वे चतुःस्पर्शी यावत् अष्टस्पर्शी पुद्गलों का आहार करते हैं । विधान मार्गणा से कर्कश यावत् रूक्ष पुद्गलों का भी आहार करते हैं । वे जिन कर्कशस्पर्शवाले पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एकगुण यावत् अनन्तगुण कर्कशपुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! ऐसा ही है । इसी प्रकार आठों ही स्पर्शो के विषय में जानना । भगवन् ! वे जिन अनन्तगुण रूक्षपुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे स्पृष्ट पुद्गलों
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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