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________________ प्रज्ञापना-२४/-/५४६ ११७ भगवन् ! मोहनीय कर्म बाँधता जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? गौतम ! सामान्य जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना | जीव और एकेन्द्रिय सप्तविधबन्धक और अष्टविधबन्धक भी होते हैं । आयुकर्म को बांधता जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? गौतम ! नियम से आठ प्रकृतियाँ बाँधता है । नैरयिकों से लेकर वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । इसी प्रकार बहुतों के विषय में भी कहना । नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म को बाँधता जीव ज्ञानावरणीय के समान ही कहना । इसी प्रकार नारक से लेकर वैमानिक तक एक और बहुवचन में कहना । पद-२४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (पद-२५-"कर्मबंधवेदपद") [५४७] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नैरयिकों यावत् वैमानिकों तक हैं । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध करता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! आठ का । इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त जानना । वेदनीयकर्म को छोड़कर शेष सभी कर्मों के सम्बन्ध में इसी प्रकार जानना । वेदनीयकर्म को बांधता हुआ एक जीव ? गौतम ! सात का, आठ का अथवा चार (कर्मप्रकृतियों) वेदन करता है । इसी प्रकार मनुष्य में कहना । शेष नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं । बहुत जीव वेदनीयकर्म को बांधते हुए गौतम ! सभी जीव आठ या चार कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं, अथवा बहुत जीव आठ या चार कर्मप्रकृतियों के और कोई एक जीव सात कर्मप्रकृतियों का वेदक होता है, अथवा बहुत जीव आठ, चार या सात कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं । इसी प्रकार बहुतसे मनुष्यों द्वारा वेदनीयकर्मबन्ध के समय वेदन सम्बन्धी कथन करना । (पद-२६-“कर्मवेदबन्धपद") [५४८] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक हैं । भगवन् ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? गौतम ! सात, आठ, छह या एक कर्मप्रकृति का । (एक) नैयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता हुआ गौतम ! सात या आठ कर्मप्रकृतियों का बंध करता है । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना । परन्तु मनुष्य का कथन सामान्य जीव के समान है । (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधते हैं ? गौतम ! सभी जीव सात या आठ कर्मप्रकृतियों के, अथवा बहुत जीव सात या आठ के और एक छह का बंधक होता है, अथवा बहुत जीव सात, आठ और छह के, अथवा वहुत जीव सात के और आठ के तथा कोई एक प्रकृति का, अथवा बहुत जीव सात, आठ और एक के, या वहुत जीव सात के तथा आठ के, एक जीव छह का और एक जीव एक का, अथवा वहुत जीव सात के या आठ के, एक जीव छह का और बहुत जीव एक के, अथवा बहुत जीव सात के, आठ के, छह के तथा एक के, अथवा बहुत जीव आठ के, सात के, छह के और एक के बंधक होते हैं । ये कुल नौ भंग हुए । एकेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों को छोड़कर शेप जीवों यावत् वैमानिकों के तीन भंग
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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