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________________ प्रज्ञापना-२३/१/५३९ १०७ [५३९] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध, स्पृष्ट, बद्ध और स्पृष्ट किये हुए, संचित, चित और उपचित किये हुए, किञ्चित्विपाक को प्राप्त, विपाक को प्राप्त, फल को प्राप्त तथा उदयप्राप्त, जीव के द्वारा कृत, निष्पादित और परिणामित, स्वयं के द्वारा दूसरे के द्वारा या दोनों के द्वारा उदीरणा-प्राप्त, ज्ञानावरणीयकर्म का, गति को, स्थिति को, भव को, पुद्गल को तथा पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके कितने प्रकार का अनुभाव कहा है ? गौतम ! दस प्रकार का, -श्रोत्रावरण, श्रोत्रविज्ञानावरण, नेत्रावरण, नेत्रविज्ञानावरण, घ्राणावरण, घ्राणविज्ञानावरण, रसावरण, रसविज्ञानावरण, स्पर्शावरण और स्पर्शविज्ञानावरण । ज्ञानावरणीयकर्म के उदय से जो पुद्गल, पुद्गलों या पुद्गल-परिणाम को अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम को वेदता है, उनके उदय से जानने योग्य को, जानने का इच्छुक होकर भी और जानकर भी नहीं जानता अथवा तिरोहित ज्ञानवाला होता है । गौतम ! यह है ज्ञानावरणीयकर्म । और यह है दस प्रकार का अनुभाव । भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! नौ प्रकार का, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला तथा स्त्यानद्धि एवं चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण | दर्शनावरण के उदय से जो पुद्गल, पुद्गलों अथवा पुद्गल-परिणाम को या स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम को वेदता है, अथवा उनके उदय से देखने योग्य को, देखना चाहते हुए भी और देखकर भी नहीं देखता अथवा तिरोहित दर्शनवाला भी हो जाता है । गौतम ! यह है दर्शनावरणीयकर्म । जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल-परिणाम को पाकर सातावेदनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! आठ प्रकार का, मनोज्ञशब्द, मनोज्ञरूप, मनोज्ञगन्ध, मनोज्ञरस, मनोज्ञस्पर्श, मन का सौख्य, वचन का सौख्य और काया का सौख्य । जिस पुद्गल का यावत् स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है, अथवा उनके उदय से सातावेदनीयकर्म को वेदा जाता है । गौतम ! यह है सातावेदनीयकर्म ।। जीव के द्वारा बद्ध यावत् असातावेदनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? पूर्ववत् जानना किन्तु 'मनोज्ञ' के बदले सर्वत्र ‘अमनोज्ञ' यावत् काया का दुःख जानना । जीव के द्वारा बद्ध...यावत् मोहनीयकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, सम्यक्त्व-वेदनीय, मिथ्यात्व-वेदनीय, सम्यग-मिथ्यात्व-वेदनीय, कषाय-वेदनीय और नो-कषाय-वेदनीय । जिस पुद्गल का यावत् स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का अथवा उनके उदय से मोहनीयकर्म वेदा जाता है । जीव के द्वारा बद्ध...यावत् आयुष्यकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम ! चार प्रकार का, -नारकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु । जिस पुद्गल का यावत् पुद्गलों के परिणाम का या उनके उदय से आयुष्यकर्म वेदा जाता है, गौतम ! यह है-आयुष्यकर्म। जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव है ? गौतम! चौदह प्रकार का, –इष्ट शब्द, इष्ट रूप, इष्ट गन्ध, इष्ट रस, इष्ट स्पर्श, इष्ट गति, इष्ट स्थिति, इष्ट लावण्य, इष्ट यशोकीर्ति, इष्ट उत्थान-कर्म-बल-वीर्य-पुरुषकार-पराक्रम, इष्ट-स्वरता, कान्तस्वरता, प्रिय-स्वरता ओर मनोज्ञ-स्वरता | जो पुद्गल यावत् पुद्गलों के परिणाम का वेदन
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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