SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाभिगम-३ / द्वीप./१७५ ९३ प्रकार के पांच वर्णों की घंटाओं और पताकाओं से परिमंडित है, वह सभा श्वेतवर्ण की है, वह किरणों के समूह को छोड़ती हुई प्रतीत होती है, वह लिपी हुई और पुती हुई है, गोशीर्ष चन्दन और सरस लाल चन्दन से बड़े बड़े हाथ के छापे लगाये हुए हैं, उसमें चन्दनकलश स्थापित किये हुए हैं, उसके द्वारभाग पर चन्दन के कलशों से तोरण सुशोभित किये गये हैं, ऊपर से लेकर नीचे तक विस्तृत, गोलाकार और लटकती हुई पुष्पमालाओं से वह युक्त है, पांच वर्ण के सरस-सुगंधित फूलों के पुंज से वह सुशोभित है, काला अगर, श्रेष्ठ कुन्दुरुक और तुरुष्क के धूप की गंध से वह महक रही है, सुगन्ध की गुटिका के समान सुगन्ध फैला रही है । वह सुधर्मा सभा अप्सराओं के समुदायों से व्याप्त है, दिव्यवाद्यों के शब्दों से वह निनादित हो रही है । वह सुरम्य है, सर्वरत्नमयी है, स्वच्छ है, यावत् प्रतिरूप है । उस सुधर्मासभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । वे प्रत्येक द्वार दो-दो योजन के ऊँचे, एक योजन विस्तार वाले और इतने ही प्रवेश वाले हैं । उन द्वारों के आगे मुखमंडप हैं। वे मुखमण्डप साढे बारह योजन लम्बे, छह योजन और एक कोस चौड़े, कुछ अधिक दो योजन ऊँचे, अनके सैकड़ों खम्भों पर स्थित हैं । उन मुखमण्डपों के ऊपर प्रत्येक पर आठआठ मंगल - स्वस्तिक यावत् दर्पण हैं । उन मुखमण्डपों के आगे अलग-अलग प्रेक्षाघरमण्डप हैं । वे प्रेक्षाघरमण्डप साढ़े बारह योजन लम्बे, छह योजन एक कोस चौड़े और कुछ अधिक दो योजन ऊँचे हैं । उनके ठीक मध्यभाग में अलग-अलग वज्रमय अक्षपाटक हैं । उन वज्रमय अक्षपाटकों के बहुमध्य भाग में अलग- अलग मणिपीठिकाएँ हैं । वे मणिपीठिकाएँ एक योजन लम्बी चौड़ी, आधा योजन मोटी हैं, सर्वमणियों की बनी हुई हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अग सिंहासन हैं । इत्यादि पूर्ववत् । उन प्रेक्षाघरमण्डपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजाएँ और छत्रों पर छत्र हैं । उन के आगे तीन दिशाओं में तीन मणिपीठिकाएँ हैं । वे मणिपीठिकाएँ दो योजन लम्बी-चौड़ी और एक योजन मोटी हैं, सर्वमणिमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं । उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चैत्यस्तूप हैं । वे चैत्यस्तूप दो योजन लम्बे-चौड़े और कुछ अधिक दो योजन ऊँचे हैं । वे शंख, अंकरत्न, कुंद, दगरज, क्षीरोदधि के मथित फेनपुंज के समान सफेद हैं, सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उन चैत्यस्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, बहुत-सी कृष्णचामर से अंकित ध्वजाएँ आदि और छत्रातिछत्र हैं । उन चैत्यस्तूपों के चारों दिशाओं में अलग-अलग चार मणिपीठिकाएँ हैं । वे एक योजन लम्बी-चौड़ी और आधा योजन मोटी सर्वमणिमय हैं । उन के ऊपर अलग-अलग चार जिन (अरिहंत ) प्रतिमाएँ कही गई हैं जो जिनोत्सेधप्रमाण हैं, पर्यंकासन से बैठी हुई हैं, उनका मुख स्तूप की ओर है । इन अरिहंत के नाम हैं - ऋषभ, वर्द्धमान, चन्द्रानन और वारिषेण । उन चैत्यस्तूपों के आगे तीन दिशाओं में अलग- अलग मणिपीठिकाएँ हैं । वे मणिपीठिकाएँ दो-दो योजन की लम्बी-चौड़ी और एक योजन मोटी हैं, सर्वमणिमय हैं, स्वच्छ हैं, मृदु पुद्गलों से निर्मित हैं, चिकनी हैं, घृष्ट हैं, मृष्ट हैं, पंकरहित, रजरहित यावत् प्रतिरूप हैं । उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चैत्यवृक्ष हैं । वे आठ योजन ऊँचे हैं, आधा योजन जमीन में हैं, दो योजन ऊँचा उनका स्कन्ध है, आधा योजन उस स्कन्ध का विस्तार है, मध्यभाग में ऊर्ध्व विनिर्गत शाखा छह योजन ऊँची है, उस विडिमा का विस्तार अर्धयोजन
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy