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________________ जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./१६४ जालगृह बने हुए हैं । ये वृक्ष ऐसी विशिष्ट मनोहर सुगंध को छोड़ते रहते हैं कि उससे तृप्ति ही नहीं होती । इन वृक्षों की क्यारियां शुभ है और उन पर जो ध्वजाएँ हैं वे भी अनेक रूप वाली हैं । अनेक गाड़ियाँ, स्थ, यान, युग्य, शिविका और स्यन्दमानिकाएँ उनके नीचे छोड़ी जाती हैं । वह वनखण्ड सुरम्य है, प्रसन्नता पैदा करने वाला है, श्लक्ष्ण है, स्निग्ध है, घृष्ट है, मृष्ट है, नीरज है, निष्पंक है, निर्मल है, निरुपहत कान्ति वाला है, प्रभा वाला है, किरणों वाला है, उद्योत करने वाला है, प्रासादिक है, दर्शनीय है, अभिरूप है और प्रतिरूप है । उस वनखण्ड के अन्दर अत्यन्त सम और रमणीय भूमिभाग है । वह भूमिभाग मुरुज के मढे हुए चमड़े के समान समतल है, मृदंग के मढे हुए चमड़े के समान समतल है पानी से भरे सरोवर के तल के समान, हथेली के समान, दर्पणतल के समान, चन्द्रमण्डल के समान, सूर्यमण्डल के समान, उरभ्र के चमड़े के समान, बैल के चमड़े के समान, वराह के चर्म के समान, सिंह के चर्म के समान, व्याघ्रचर्म के समान, भेडिये के चर्म के समान और चीते के चमड़े के समान समतल है । इन सब पशुओं का चमड़ा जब शंकु प्रमाण हजारों कीलों से ताड़ित होता है तब वह बिल्कुल समतल हो जाता है वह वनखण्ड आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणी, प्रश्रेणी, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्यमाणव, वर्धमानक, मत्स्यंडक, मकरंडक, जारमारलक्षण वाली मणियों, नानाविध पंचवर्ण वाली मणियों, पुष्पावली, पद्मपत्र, सागरतरंग, वासन्तीलता, पद्मलता आदि विविध चित्रों से युक्त मणियों और तृणों से सुशोभित है । वे मणियाँ कान्ति वाली, किरणों वाली, उद्योत करने वाली और कृष्ण यावत् शुक्ल रूप पंचवर्णों वाली हैं । ऐसे पंचवर्णी मणियों और तृणों से वह वनखण्ड सुशोभित है । उन तृणों और मणियों में जो काले वर्ण के तृण और मणियां हैं, उनका वर्णावास इस प्रकार है-जैसे वर्षाकाल के प्रारम्भ में जल भरा बादल हो, सौवीर अंजन अथवा अञ्जन रत्न हो, खञ्जन हो, काजल हो, काली स्याही हो, घुले हुए काजल की गोली हो, भैंसे का श्रृंग हो, भैंसे के श्रृंग से बनी गोली हो, भंवरा हो, भौरों की पंक्ति हो, भंवरों के पंखों के बीच का स्थान हो, जम्बू का फल हो, गीला अरीठा हो, कोयल हो, हाथी हो, हाथी का बच्चा हो, काला सांप हो, काला बकुल हो, बादलों से मुक्त आकाशखण्ड हो, काला अशोक, काला कनेर और काला बन्धुजीव हो । हे भगवन् ! ऐसा काला वर्ण उन तृणों और मणियों का होता है क्या ? हे गौतम ! ऐसा नहीं है । इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उनका वर्ण होता है । उन तणों और मणियों में जो नीली मणियां और नीले तण हैं, उनका वर्ण इस प्रकार का है-जैसे नीला भंग हो, नीले भ्रंग का पंख हो, चास हो, चास का पंख हो, नीले वर्ण का शुक हो, शुक का पंख हो, नील हो, नीलखण्ड हो, नील की गुटिका हो, श्यामाक हो, नीला दंतराग हो, नीलीवनराजि हो, बलभद्र का नीला वस्हो, मयूर की ग्रीवा हो, कबूतर की ग्रीवा हो, अलसी का फूल हो, अञ्जनकेशिका वनस्पति का फूल हो, नीलकमल हो, नीला अशोक हो, नीला कनेर हो, नीला बन्धुजीवक हो, भगवन् ! क्या ऐसा नीला उनका वर्ण होता है ? गौतम ! यह बात नहीं है । इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उन नीले तृण-मणियों का वर्ण होता है ।। उन तृणों और मणियों में जो लाल वर्ण के तृण और मणियां हैं, उनका वर्ण इस प्रकार
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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